संवैधानिक प्रावधान
भारत के संविधान में राजभाषा से संबंधित भाग-17
अध्याय
1--संघ
की भाषा
अनुच्छेद
120.
संसद् में प्रयोग की जाने वाली भाषा
-
(1)
भाग
17
में किसी बात के होते हुए भी,
किंतु अनुच्छेद
348
के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
संसद् में कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में
किया जाएगा
परंतु,
यथास्थिति,
राज्य सभा का सभापति या लोक सभा का अध्यक्ष
अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को,
जो हिंदी में या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त
अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है,
अपनी मातृ-भाषा में सदन को संबोधित करने की
अनुज्ञा दे सकेगा ।
(2)
जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संविधान
के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि की
समाप्ति
के पश्चात् यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो
“या
अंग्रेजी में”
शब्दों का उसमें से लोप कर दिया गया हो ।
अनुच्छेद
210:
विधान-मंडल
में प्रयोग की जाने वाली भाषा
-
(1)
भाग
17
में किसी बात के होते हुए भी,
किंतु अनुच्छेद
348
के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
राज्य के विधान-मंडल में कार्य राज्य की
राजभाषा या राजभाषाओं में या हिंदी
में या अंग्रेजी में किया जाएगा
परंतु,
यथास्थिति,
विधान सभा का अध्यक्ष या विधान परिषद् का
सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को,
जो पूर्वोक्त भाषाओं में से किसी भाषा में अपनी
पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है,
अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की
अनुज्ञा दे सकेगा ।
(2)
जब तक राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा अन्यथा
उपबंध न करे तब तक इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की
अवधि की समाप्ति
के पश्चात् यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो
“
या अंग्रेजी में
”
शब्दों का उसमें से लोप कर दिया गया हो
:
परंतु हिमाचल प्रदेश,
मणिपुर,
मेघालय और त्रिपुरा राज्यों के विधान-मंडलों के
संबंध में,
यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसमें आने
वाले
“पंद्रह
वर्ष”
शब्दों के स्थान पर
“पच्चीस
वर्ष”
शब्द रख दिए गए हों
:
परंतु यह और कि अरूणाचल प्रदेश,
गोवा और मिजोरम राज्यों के विधान-मंडलों के
संबंध में यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसमें आने वाले
“
पंद्रह वर्ष
”
शब्दों के स्थान पर
“
चालीस
वर्ष
”
शब्द रख दिए गए हों ।
अनुच्छेद
343.
संघ की राजभाषा--
(1)
संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी,
संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने
वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
(2)
खंड
(1)
में किसी बात के होते हुए भी,
इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि
तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का
प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक
पहले प्रयोग किया जा रहा था
:
परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान,
आदेश द्वारा,
संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए
अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के
अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग
प्राधिकृत कर सकेगा।
(3)
इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी,
संसद् उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्,
विधि द्वारा
(क)
अंग्रेजी भाषा का,
या
(ख)
अंकों के देवनागरी रूप का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में
विनिर्दिष्ट किए जाएं।
अनुच्छेद
344.
राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति--
(1)
राष्ट्रपति,
इस संविधान के प्रारंभ से पांच वर्ष की समाप्ति
पर और तत्पश्चात् ऐसे प्रारंभ से दस वर्ष की
समाप्ति
पर,
आदेश द्वारा,
एक आयोग गठित करेगा जो एक अध्यक्ष और आठवीं
अनुसूची में विनिर्दिष्ट विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने
वाले ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा जिनको राष्ट्रपति
नियुक्त करे और आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली
प्रक्रिया परिनिश्चित
की जाएगी।
(2)
आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को--
(क)
संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग,
(ख)
संघ के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा
के प्रयोग पर निर्बंधनों,
(ग)
अनुच्छेद
348
में उल्लिखित सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने
वाली भाषा,
(घ)
संघ के किसी एक या अधिक विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयोग
किए जाने वाले अंकों के रूप,
(ड़)
संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच या एक राज्य और
दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की भाषा और उनके प्रयोग के संबंध
में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्देशित किए गए किसी अन्य
विषय,
के बारे में सिफारिश करे।
(3)
खंड
(2)
के अधीन अपनी सिफारिशें करने में,
आयोग भारत की औद्योगिक,
सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक
सेवाओं के संबंध में अहिंदी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों के
न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक ध्यान रखेगा।
(4)
एक समिति गठित की जाएगी जो तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी जिनमें
से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे और दस राज्य सभा के सदस्य होंगे
जो क्रमशः लोक सभा के सदस्यों और राज्य सभा के सदस्यों द्वारा
आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत
द्वारा निर्वाचित होंगे।
(5)
समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह खंड
(1)के
अधीन गठित आयोग की सिफारिशों की परीक्षा करे और राष्ट्रपति को
उन पर अपनी राय के बारे में प्रतिवेदन दे।
(6)
अनुच्छेद
343
में किसी बात के होते हुए भी,
राष्ट्रपति खंड
(5)
में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् उस संपूर्ण
प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश दे सकेगा।
अध्याय
2-
प्रादेशिक भाषाएं
अनुच्छेद
345.
राज्य की राजभाषा या राजभाषाएं--
अनुच्छेद
346
और अनुच्छेद
347
के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
किसी राज्य का विधान-मंडल,
विधि द्वारा,
उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से
किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या
किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा या
भाषाओं के रूप में अंगीकार कर सकेगाः
परंतु जब तक राज्य का विधान-मंडल,
विधि द्वारा,
अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन
शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता
रहेगा जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले
प्रयोग किया जा रहा था।
अनुच्छेद
346.
एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच
पत्रादि की राजभाषा--
संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने के लिए
तत्समय प्राधिकृत भाषा,
एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य
और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा होगी
:
परंतु यदि दो या अधिक राज्य यह करार करते हैं कि उन राज्यों के
बीच पत्रादि की राजभाषा हिंदी भाषा होगी तो ऐसे पत्रादि के लिए
उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।
अनुच्छेद
347.
किसी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जाने वाली
भाषा के संबंध में विशेष उपबंध--
यदि इस निमित्त मांग किए जाने पर राष्ट्रपति का यह समाधान हो
जाता है कि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता
है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा
मान्यता दी जाए तो वह निदेश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस
राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए,
जो वह विनिर्दिष्ट करे,
शासकीय मान्यता दी जाए।
अध्याय
3
- उच्चतम
न्यायालय,
उच्च न्यायालयों आदि की भाषा
अनुच्छेद
348.
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों,
विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा--
(1)
इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी,
जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा
उपबंध न करे तब तक--
(क)
उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी
कार्यवाहियां अंग्रेजी
भाषा में होंगी,
(ख)
(i)
संसद् के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन या
प्रत्येक सदन में पुरःस्थापित किए जाने वाले सभी विधेयकों या
प्रस्तावित किए जाने वाले उनके संशोधनों के,
(ii)
संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित सभी अधिनियमों
के और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित
सभी अध्यादेशों के
,और
(iii) इस संविधान के अधीन अथवा संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन निकाले गए या बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों के, प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे।
(2)
खंड(1)
के उपखंड
(क)
में किसी बात के होते हुए भी,
किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व
सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में,
जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है,
हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय
प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग
प्राधिकृत कर सकेगाः
परंतु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए किसी
निर्णय,
डिक्री या आदेश को लागू नहीं होगी।
(3)
खंड
(1)
के उपखंड
(ख)
में किसी बात के होते हुए भी,
जहां किसी राज्य के विधान-मंडल ने,उस
विधान-मंडल में पुरःस्थापित विधेयकों या उसके द्वारा पारित
अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित
अध्यादेशों में अथवा उस उपखंड के पैरा
(iv)
में निर्दिष्ट किसी आदेश,
नियम,
विनियम या उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेजी
भाषा से भिन्न कोई भाषा विहित की है वहां उस राज्य के राजपत्र
में उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से प्रकाशित अंग्रेजी
भाषा में उसका अनुवाद इस अनुच्छेद के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा
में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
अनुच्छेद
349.
भाषा से संबंधित कुछ विधियां अधिनियमित करने के लिए विशेष
प्रक्रिया--
इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि के दौरान,
अनुच्छेद
348
के खंड
(1)
में उल्लिखित किसी प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के
लिए उपबंध करने वाला कोई विधेयक या संशोधन संसद के किसी सदन
में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पुरःस्थापित या
प्रस्तावित नहीं किया जाएगा और राष्ट्रपति किसी ऐसे विधेयक को
पुरःस्थापित या किसी ऐसे संशोधन को प्रस्तावित किए जाने की
मंजूरी अनुच्छेद
344
के खंड
(1)
के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों पर और उस अनुच्छेद के खंड
(4)
के अधीन गठित समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् ही
देगा,
अन्यथा नहीं।
अध्याय
4--
विशेष निदेश
अनुच्छेद
350.
व्यथा
के
निवारण
के
लिए
अभ्यावेदन
में
प्रयोग
की
जाने
वाली
भाषा--
प्रत्येक व्यक्ति किसी व्यथा के निवारण के लिए संघ या राज्य के
किसी अधिकारी या प्राधिकारी को,
यथास्थिति,
संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी
भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा।
अनुच्छेद
350
क.
प्राथमिक
स्तर
पर
मातृभाषा
में
शिक्षा
की
सुविधाएं--
प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी
भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर
पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने
का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निदेश दे
सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित
कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।
अनुच्छेद
350
ख.
भाषाई
अल्पसंख्यक-वर्गों
के
लिए
विशेष
अधिकारी--
(1)
भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए एक विशेष अधिकारी होगा जिसे
राष्ट्रपति नियुक्त करेगा।
(2)
विशेष अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह इस संविधान के अधीन
भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित
सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन विषयों के संबंध में ऐसे
अंतरालों पर जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट करे,
राष्ट्रपति को प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और संबंधित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा।
अनुच्छेद
351.
हिंदी
भाषा
के
विकास
के
लिए
निदेश--
संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए,
उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक
संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और
उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्थानी में और आठवीं
अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप,
शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां
आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः
संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी
समृद्धि सुनिश्चित
करे।
|
लक्ष्य नामक इस ब्लॉग वेब साईट का लक्ष्य उन सभी लोगो की सहायता करना है , जो प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी तो करना तो चाहते है , पर किसी कारणवश मार्गदर्शन के आभाव या समय के आभाव में तैयारी नही कर पाते है ।ऐसे सभी प्रतियोगियों की सहायता करना ही इस वेबसाइट का लक्ष्य है । आपकी सफलता में हमारी सहायता ही हमारा लक्ष्य
गुरुवार, 21 नवंबर 2013
भारत के संविधान में राजभाषा से संबंधित भाग-17
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