शनिवार, 15 जून 2013

भारत के बारे में रोचक तथ्‍य !

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  • भारत ने अपने आखिरी 100000 वर्षों के इतिहास में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।
  • भारत का नाम ऋग्वेद के अनुसार प्राचीन जन (कबीला ) " भरत " के नाम पर भारत पड़ा . इसके राजा सुदास थे . जिन्होंने परुश्नि (वर्तमान में रावी ) नदी के तट पर दसराज्ञ युद्ध में दस जनों को पराजित किया था . 
  • जब कई संस्कृतियों में 5000 साल पहले घुमंतू वनवासी थे, तब भारतीयों ने सिंधु घाटी (सिंधु घाटी सभ्यता) में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना की।
  • हड़प्पा संस्कृति विश्व की पहली नगरीय संस्कृति है . 
  • भारत का अंग्रेजी में नाम ‘इंडिया’ इं‍डस नदी से बना है, जिसके आस पास की घाटी में आरंभिक सभ्‍यताएं निवास करती थी। आर्य पूजकों में इस इंडस नदी को सिंधु कहा।
  • ईरान से आए आक्रमणकारियों ने सिंधु को हिंदु की तरह प्रयोग किया। ‘हिंदुस्तान’ नाम सिंधु और हिंदु का संयोजन है, जो कि हिंदुओं की भूमि के संदर्भ में प्रयुक्त होता है।
  • शतरंज की खोज भारत में की गई थी।
  • बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का अध्‍ययन भारत में ही आरंभ हुआ था।
  • ‘स्‍थान मूल्‍य प्रणाली’ और 'दशमलव प्रणाली' का विकास भारत में 100 बी सी में हुआ था।
  • विश्‍व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्‍वर मंदिर है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़ों से बने हैं। यह भव्‍य मंदिर राजाराज चोल के राज्‍य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (1004 ए डी और 1009 ए डी के दौरान) निर्मित किया गया था।
  • भारत विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्‍व का सातवां सबसे बड़ा देश तथा प्राचीन सभ्‍यताओं में से एक है।
  • सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्‍दी में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्‍व करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्‍तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्‍छे काम लोगों को स्‍वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे काम दोबारा जन्‍म के चक्र में डाल देते हैं।
  • दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्‍थान पर है। इसे समुद्री सतह से 2444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बना कर 1893 में तैयार किया गया था।
  • भारत में विश्‍व भर से सबसे अधिक संख्‍या में डाक खाने स्थित हैं।
  • भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा नियोक्ता है। यह दस लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
  • विश्‍व का सबसे प्रथम विश्‍वविद्यालय 700 बी सी में तक्षशिला में स्‍थापित किया गया था। चाणक्य तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य थे .  इसमें 60 से अधिक विषयों में 10,500 से अधिक छात्र दुनियाभर से आकर अध्‍ययन करते थे।
  • नालंदा विश्‍वविद्यालय चौथी शताब्‍दी में स्‍थापित किया गया था जो शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक है।
  • आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे आरंभिक चिकित्‍सा शाखा है। शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक में 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।
  • भारत 17वीं शताब्‍दी के आरंभ तक ब्रिटिश राज्‍य आने से पहले सबसे सम्‍पन्‍न देश था। क्रिस्‍टोफर कोलम्‍बस भारत की सम्‍पन्‍नता से आकर्षित हो कर भारत आने का समुद्री मार्ग खोजने चला और उसने गलती से अमेरिका को खोज लिया।
  • नौवहन की कला और नौवहन का जन्‍म 6000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्‍कृ‍त शब्‍द नव गति से उत्‍पन्‍न हुआ है। शब्‍द नौ सेना भी संस्‍कृत शब्‍द नोउ से हुआ।
  • भास्‍कराचार्य ने खगोल शास्‍त्र के कई सौ साल पहले पृथ्‍वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्‍वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।
  • भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा 'पाई' का मूल्‍य ज्ञात किया गया था और उन्‍होंने जिस संकल्‍पना को समझाया उसे पाइथागोरस का प्रमेय करते हैं। उन्‍होंने इसकी खोज छठवीं शताब्‍दी में की, जो यूरोपीय गणितज्ञों से काफी पहले की गई थी।
  • बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का उद्भव भी भारत में हुआ था। चतुष्‍पद समीकरण का उपयोग 11वीं शताब्‍दी में श्री धराचार्य द्वारा किया गया था। ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसे बड़ी संख्‍या 106 थी जबकि हिन्‍दुओं ने 10*53 जितने बड़े अंकों का उपयोग (अर्थात 10 की घात 53), के साथ विशिष्‍ट नाम 5000 बीसी के दौरान किया। आज भी उपयोग की जाने वाली सबसे बड़ी संख्‍या टेरा: 10*12 (10 की घात12) है।
  • वर्ष 1896 तक भारत विश्‍व में हीरे का एक मात्र स्रोत था।
    (स्रोत: जेमोलॉजिकल इंस्‍टी‍ट्यूट ऑफ अमेरिका)
  • बेलीपुल विश्‍व‍ में सबसे ऊंचा पुल है। यह हिमाचल पर्वत में द्रास और सुरु नदियों के बीच लद्दाख घाटी में स्थित है। इसका निर्माण अगस्‍त 1982 में भारतीय सेना द्वारा किया गया था।
  • सुश्रुत को शल्‍य चिकित्‍सा का जनक माना जाता है। लगभग 2600 वर्ष पहले सुश्रुत और उनके सहयोगियों ने मोतियाबिंद, कृत्रिम अंगों को लगना, शल्‍य क्रिया द्वारा प्रसव, अस्थिभंग जोड़ना, मूत्राशय की पथरी, प्‍लास्टिक सर्जरी और मस्तिष्‍क की शल्‍य क्रियाएं आदि की।
  • निश्‍चेतक का उपयोग भारतीय प्राचीन चिकित्‍सा विज्ञान में भली भांति ज्ञात था। शारीरिकी, भ्रूण विज्ञान, पाचन, चयापचय, शरीर क्रिया विज्ञान, इटियोलॉजी, आनुवांशिकी और प्रतिरक्षा विज्ञान आदि विषय भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में पाए जाते हैं।
  • भारत से 90 देशों को सॉफ्टवेयर का निर्यात किया जाता है।
  • भारत में 4 धर्मों का जन्‍म हुआ - हिन्‍दु, बौद्ध, जैन और सिक्‍ख धर्म और जिनका पालन दुनिया की आबादी का 25 प्रतिशत हिस्‍सा करता है।
  • जैन धर्म और बौद्ध धर्म की स्‍थापना भारत में क्रमश: 600 बी सी और 500 बी सी में हुई थी
  • इस्‍लाम भारत का और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है।
  • भारत में 3,00,000 मस्जिदें हैं जो किसी अन्‍य देश से अधिक हैं, यहां तक कि मुस्लिम देशों से भी अधिक।
  • भारत में सबसे पुराना यूरोपियन चर्च और सिनागोग कोचीन शहर में है। इनका निर्माण क्रमश: 1503 और 1568 में किया गया था।
  • ज्‍यू और ईसाई व्‍यक्ति भारत में क्रमश: 200 बी सी और 52 ए डी से निवास करते हैं।
  • विश्‍व में सबसे बड़ा धार्मिक भवन अंगकोरवाट, हिन्‍दु मंदिर है जो कम्‍बोडिया में 11वीं शताब्‍दी के दौरान बनाया गया था।
  • तिरुपति शहर में बना विष्‍णु मंदिर 10वीं शताब्‍दी के दौरान बनाया गया था, यह विश्‍व का सबसे बड़ा धार्मिक गंतव्‍य है। रोम या मक्‍का धार्मिक स्‍थलों से भी बड़े इस स्‍थान पर प्रतिदिन औसतन 30 हजार श्रद्धालु आते हैं और लगभग 6 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति दिन चढ़ावा आता है।
  • सिक्‍ख धर्म का उद्भव पंजाब के पवित्र शहर अमृतसर में हुआ था। यहां प्रसिद्ध स्‍वर्ण मंदिर की स्‍थापना 1577 में गई थी।
  • वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है जब भगवान बुद्ध ने 500 बी सी में यहां आगमन किया और यह आज विश्‍व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है।
  • भारत द्वारा श्रीलंका, तिब्‍बत, भूटान, अफगानिस्‍तान और बांग्‍लादेश के 3,00,000 से अधिक शरणार्थियों को सुरक्षा दी जाती है, जो धार्मिक और राजनैतिक अभियोजन के फलस्‍वरूप वहां से निकल गए हैं।
  • माननीय दलाई लामा तिब्‍बती बौद्ध धर्म के निर्वासित धार्मिक नेता है, जो उत्तरी भारत के धर्मशाला में अपने निर्वासन में रह रहे हैं।
  • युद्ध कलाओं का विकास सबसे पहले भारत में किया गया और ये बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा पूरे एशिया में फैलाई गई।
  • योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यह 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद है। 
  • भारत में विश्व की सबसे ज्यादा सब्जी , चाय , दूध , शक्कर , गन्ना , काजू , फल , नारियल आदि का उत्पादन होता है .
  • बेडमिन्टन और पोलो खेलो की उत्पत्ति भारत में हुई .
  • विश्व में सबसे ज्यादा मतदाता और युवा भारत में  है . 
  • प्राचीनकाल में भारत की सीमायें अफगानिस्तान , पाकिस्तान , श्रीलंका , बांग्लादेश , भूटान , नेपाल , और म्यांमार से आगे फैली हुई थी .
  • विश्व की सबसे सुन्दर इमारत ' ताज महल ' है . जो दुनिया की एकमात्र पूर्ण चतुर्भुजीय इमारत है . यह चारो ओर से बिलकुल एक सी है .  
  • विश्व में सबसे ज्यादा पशु भी भारत में पाए जाते है .

    साभार - गूगल , know india

शुक्रवार, 14 जून 2013

अन्तरिक्ष से सम्बन्धित कुछ रोचक जानकारी

  • सूर्य से पृथ्वी पर आने वाला प्रकाश 30 हजार वर्ष पुराना होता है।
अब आप कहेंगे कि सूर्य से पृथ्वी की दूरी तो मात्र 8.3 प्रकाश मिनट है तो ऐसा कैसे हो सकता है। यह सच है कि प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में 8.3 मिनट ही लगते हैं किन्तु जो प्रकाश हम तक पहुँच रहा है उसे सूर्य के क्रोड (core) से उसके सतह तक आने में 30 हजार वर्ष लगते हैं और वह सूर्य की सतह पर आने के बाद ही 8.3 मिनट पश्चात् पृथ्वी तक पहुँचता है, याने कि वह प्रकाश 30 हजार वर्ष पुराना होता है।
  • अन्तरिक्ष में यदि धातु के दो टुकड़े एक दूसरे को स्पर्श कर लें तो वे स्थायी रूप से जुड़ जाते हैं।
यह भी अविश्वसनीय लगता है किन्तु यह सच है। अन्तरिक्ष के निर्वात के कारण दो धातु आपस में स्पर्श करने पर स्थायी रूप से जुड़ जाते हैं, बशर्तें कि उन पर किसी प्रकार का लेप (coating) न किया गया हो। पृथ्वी पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि वायुमण्डल दोनों धातुओं के आपस में स्पर्श करते समय उनके बीच ऑक्सीडाइज्ड पदार्थ की एक परत बना देती है।
  • अन्तरिक्ष में ध्वनि एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जा सकती।
  • जी हाँ, ध्वनि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है और अन्तरिक्ष में निर्वात् होने के कारण ध्वनि को गति के लिए कोई माध्यम उपलब्ध नहीं हो पाता।
  • शनि ग्रह का घनत्व इतना कम है कि यदि काँच के किसी विशालाकार बर्तन में पानी भर कर शनि को उसमें डाला जाए तो वह उसमें तैरने लगेगा।
  • वृहस्पति इतना बड़ा है कि शेष सभी ग्रहों को आपस में जोड़ दिया जाए तो भी वह संयुक्त ग्रह वृहस्पति से छोटा ही रहेगा।
  • स्पेस शटल का मुख्य इंजिन का वजन एक ट्रेन के इंजिन के वजन का मात्र 1/7 के बराबर होता है किन्तु वह 39 लोकोमोटिव्ह के बराबर अश्वशक्ति उत्पन्न करता है।
  • शुक्र ही एक ऐसा ग्रह है जो घड़ी की सुई की दिशा में घूमता है।
  • चन्द्रमा का आयतन प्रशान्त महासागर के आयतन के बराबर है।
  • सूर्य पृथ्वी से 330,330 गुना बड़ा है।
  • अन्तरिक्ष में पृथ्वी की गति 660,000 मील प्रति घंटा है।
  • शनि के वलय की परिधि 500,000 मील है जबकि उसकी मोटाई मात्र एक फुट है।
  • वृहस्पति के चन्द्रमा, जिसका नाम गेनीमेड (Ganymede) है, बुध ग्रह से भी बड़ा है।
  • किसी अन्तरिक्ष वाहन को वायुमण्डल से बाहर निकलने के लिए कम से कम 7 मील प्रति सेकण्ड की गति की आवश्यकता होती है।
  • पृथ्वी के सारे महाद्वीप की चौड़ाई दक्षिण दिशा की अपेक्षा उत्तर दिशा में अधिक है, यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि ऐसा क्यों है।
  • हमें आसमान नीला दिखाई देता है , लेकिन वास्तव में वह अंतरिक्ष यात्रियों को काला दिखाई देता है . 
  • शुक्र ग्रह को 'पृथ्वी की बहन ' , प्रेशर कुकर की दशा वाला गृह , भोर का तारा , साँझ का तारा कहा जाता है .
  • युरेनस की अक्षीय स्थिति के कारण उसे ' लेटा हुआ ग्रह ' कहते है . 
  • हमारे सौर मंडल में 8  ग्रह  है , लेकिन हमें रात को नंगी आँखों से सिर्फ पांच- बुध, शुक्र , मंगल , वृहस्पति और शनि ग्रह ही दिखाई देते है . युरेनस , नेपच्यून तो हमसे बहुत दूर है , और पृथ्वी पर तो हम देख ही रहे है . 
  • शनि को पीला  , पृथ्वी को नीला , युरेनस को हरा , मंगल को लाल ग्रह कहते है .
  •  साभार - जी ० के ० अवधिया

बजट से संबंधित कुछ रोचक जानकारियां





किसी भी देश के लिए बजट वहां की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग होता है. यह बजट ही है जिसकी बदौलत हम जान पाते हैं कि आने वाले एक वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति रहने वाली है. आजादी के बाद से ही भारत में बजट को लेकर काफी उत्सुकता रही है. आपकी इसी उत्सुकता को शांत करने के लिए आइए जानते हैं बजट के बारे में कुछ रोचक तथ्य.



 1. स्वतन्त्र भारत का पहला अंतरिम बजट 26 नवंबर, 1947 को आर.के. षण्मुखम शेट्टी ने प्रस्तुत किया गया था.
2. जवाहरलाल नेहरू देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने बजट को संसद में प्रस्तुत किया.
3. मोराजी देसाई 8 वर्ष के सर्वाधिक लम्बे समय के लिए वित्त मन्त्री रहे और उन्होंने संसद में सर्वाधिक 10 बार बजट प्रस्तुत किया. मोराजी देसाई जवाहर लाल नेहरु के कार्यकाल में 5 साल जबकि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 3 साल देश के वित्त मंत्री रहे.
4. वर्ष 1964 और 1968 में वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने आम बजट अपने जन्म दिन के अवसर पर प्रस्तुत किया था.
5. सी.डी. देशमुख रिजर्व बैंक के एकमात्र ऐसे गवर्नर हैं जिन्होंने सन् 1951-52 में अन्तरिम बजट प्रस्तुत किया था.
6. सन् 1991-92 में अन्तरिम तथा फाइनल बजट को अलग-अलग दलों के वित्त मन्त्रियों ने संसद में रखा. अंतरिम बजट यशवन्त सिन्हा जबकि फाइनल बजट को मनमोहन सिंह ने प्रस्तुत किया.
7. बजट को सार्वजनिक करने से इसे बेहद ही गुप्त रखा जाता है. पहले बजट पेपर्स राष्ट्रपति भवन में ही छपा करते थे. सन् 1950 में बजट पेपर लीक हो गए जिसके कारण बाद में बजट पेपर्स को मिंटो रोड स्थित सीक्योरिटी प्रेस में छापा जाने लगा. 1980 से बजट पेपर नॉर्थ ब्लॉक से प्रिंट होने लगा.
8. संसद में बजट प्रस्तुत करने वाली एकमात्र महिला इन्दिरा गांधी हैं, जिन्होंने 1970 में आपातकाल के दौरान संसद में बजट पेश किया था.
9. 1987-88 में वी.पी. सिंह द्वारा सरकार से अलग हट जाने के बाद राजीव गांधी देश के तीसरे ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने अपनी मां इंदिरा गांधी और नाना जवाहरलाल नेहरू के बाद बजट को प्रस्तुत किया.
10. 1996 में चुनाव के बाद, एक गैर-कांग्रेसी मंत्रालय ने पद ग्रहण किया. इसलिए 1996-97 के अंतरिम बजट को पी. चिदम्बरम द्वारा प्रस्तुत किया गया जो उस समय तमिल मानिला कांग्रेस से संबंधित थे. यह दूसरी बार था जब अंतरिम और फाइनल बजट अलग-अलग पार्टियों के दो मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत किया गया.
11. एक संवैधानिक संकट के बाद जब आई. के. गुजराल का मंत्रालय समाप्त हो रहा था तब चिदंबरम के 1997-98 बजट को पारित करने के लिए संसद की एक विशेष सत्र बुलाई गई थी. इस बजट को बिना बहस के ही पारित किया गया था.
12. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात से सन् 1998-1999 तक बजट शाम को पांच बजे ही प्रस्तुत किया जाता रहा लेकिन सन् 1999-2000 में यशवंत सिन्हा ने पहली बार शाम की बजाय सुबह के समय बजट प्रस्तुत किया.

सोमवार, 10 जून 2013

सिन्धु घाटी की महान सभ्यता !

12 लाख 99  हजार वर्ग किमि० में फैली ये सभ्यता वर्तमान उत्तर-पश्चिम भारत , पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक फैली थी .
सिंधु घाटी सभ्यता(३३००-१७०० ई.पू.) यह हड़प्पा संस्कृति विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। इसका विकास सिंधु नदी के किनारे की घाटियों में मोहनजोदड़ो, कालीबंगा , चन्हुदडो , रन्गपुर् , लोथल् , धौलाविरा , राखीगरी , दैमाबाद , सुत्कन्गेदोर, सुरकोतदा और हड़प्पा में हुआ था। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं। हड़प्पा (मांत गोमरी, पंजाब , पाकिस्तान ) नमक स्थल की खोज सबसे पहले 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी ने की . उसके बाद १९२२ में राखालदास बनर्जी ने मोहन जोदड़ो (लरकाना , सिंध , पाकिस्तान ) को खोजा. इन दोनों शहरो को इस सभ्यता की जुड़वाँ राजधानी माना गया. 

हड़प्पा संस्कृति के स्थल

सिन्धु घाटी सभ्यता के अधिकांश स्थल बड़े ही सुनियोजित ढंग से बनाये गये थे .
इसे हड़प्पा संस्कृति इसलिए कहा जाता है कि सर्वप्रथम 1924 में आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के हड़प्पा नामक जगह में इस सभ्यता का बारे में पता चला । इस परिपक्व सभ्यता के केन्द्र-स्थल पंजाब तथा सिन्ध में था । तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ । इस प्रकार हड़प्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब, सिन्ध और बलूचिस्तान के भाग ही नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमान्त भाग भी थे। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था । यह सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार है और इसका क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किलोमीटर है । इस तरह यह क्षेत्र आधुनिक पाकिस्तान से तो बड़ा है ही, प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ा है । ईसा पूर्व तीसरी और दूसरी सहस्त्राब्दी में संसार भार में किसी भी सभ्यता का क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति से बड़ा नहीं था । अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस संस्कृति के कुल 1000 स्थलों का पता चल चुका है । इनमें से कुछ आरंभिक अवस्था के हैं तो कुछ परिपक्व अवस्था के और कुछ उत्तरवर्ती अवस्था के । परिपक्व अवस्था वाले कम जगह ही हैं । इनमें से आधे दर्जनों को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है । इनमें से दो नगर बहुत ही महत्वपूर्ण हैं – पंजाब का हड़प्पा तथा सिन्ध का मोहें जो दड़ो (शाब्दिक अर्थ – प्रेतों का टीला) । दोनो ही स्थल पाकिस्तान में हैं । दोनो एक दूसरे से 483 किमी दूर थे और सिंधु नदी द्वारा जुड़े हुए थे । तीसरा नगर मोहें जो दड़ो से 130 किमी दक्षिण में चन्हुदड़ो स्थल पर था तो चौथा नगर गुजरात के खंभात की खाड़ी के उपर लोथल नामक स्थल पर । इसके अतिरिक्त राजस्थान के उत्तरी भाग में कालीबंगां (शाब्दिक अर्थ -काले रंग की चूड़ियां) तथा हरियाणा के हिसार जिले का बनावली । इन सभी स्थलों पर परिपक्व तथा उन्नत हड़प्पा संस्कृति के दर्शन होते हैं । सुतकागेंडोर तथा सुरकोतड़ा के समुद्रतटीय नगरों में भी इस संस्कृति की परिपक्व अवस्था दिखाई देती है । इन दोनों की विशेषता है एक एक नगर दुर्ग का होना । उत्तर ङड़प्पा अवस्था गुजरात के कठियावाड़ प्रायद्वीप में रंगपुर और रोजड़ी स्थलों पर भी पाई गई है ।

नगर योजना

इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना । हड़प्पा तथा मोहें जो दड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था । प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे । इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे । यानि सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खंडों में विभक्त हो जाता था । ये बात सभी सिन्धु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे छोटी हों या बड़ी । हड़प्पा तथा मोहें जो दड़ो के भवन बड़े होते थे । वहां के स्मारक इस बात के प्रमाण हैं कि वहां के शासक मजदूर जुटाने और कर-संग्रह में परम कुशल थे । ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत देख कर सामान्य लोगों को भी यह लगेगा कि ये शासक कितने प्रतापी और प्रतिष्ठावान थे । मोहें जो दड़ो का अब तक का सबसे प्रसिद्ध स्थल है विशाल सार्वजनिक स्नानागार, जिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है । यह ईंटो के स्थापत्य का एक सुन्दर उदाहरण है । यब 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है । दोनो सिरों पर तल तक जाने की सीढ़ियां लगी हैं । बगल में कपड़े बदलने के कमरे हैं । स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है । पास के कमरे में एक बड़ा सा कुंआ है जिसका पानी निकाल कर होज़ में डाला जाता था । हौज़ के कोने में एक निर्गम (Outlet) है जिससे पानी बहकर नाले में जाता था । ऐसा माना जाता है कि यह विशाल स्नानागर धर्मानुष्ठान सम्बंधी स्नान के लिए बना होगा जो भारत में पारंपरिक रूप से धार्मिक कार्यों के लिए आवश्यक रहा है । मोहें जो दड़ो की सबसे बड़ा संरचना है – अनाज रखने का कोठार, जो 45.71 मीटर लंबा और 15.23 मीटर चौड़ा है । हड़प्पा के दुर्ग में छः कोठार मिले हैं जो ईंटों के चबूतरे पर दो पांतों में खड़े हैं । हर एक कोठार 15.23 मी. लंबा तथा 6.09 मी. चौड़ा है और नदी के किनारे से कुछेक मीटर की दूरी पर है । इन बारह इकाईयों का तलक्षेत्र लगभग 838.125 वर्ग मी. है जो लगभग उतना ही होता है जितना मोहें जोदड़ो के कोठार का । हड़प्पा के कोठारों के दक्षिण में खुला फर्श है और इसपर दो कतारों में ईंट के वृत्ताकार चबूतरे बने हुए हैं । फर्श की दरारों में गेहूँ और जौ के दाने मिले हैं । इससे प्रतीत होता है कि इन चबूतरों पर फ़सल की दवनी होती थी । हड़प्पा में दो कमरों वाले बैरक भी मिले हैं जो शायद मजदूरों के रहने के लिए बने थे । कालीबंगां में भी नगर के दक्षिण भाग में ईंटों के चबूतरे बने हैं जो शायद कोठारों के लिए बने होंगे । इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि कोठार हड़प्पा संस्कृति के अभिन्न अंग थे । हड़प्पा संस्कृति के नगरों में ईंट का इस्तेमाल एक विशेष बात है, क्योंकि इसी समय के मिस्र के भवनों में धूप में सूखी ईंट का ही प्रयोग हुआ था । समकालीन मेसोपेटामिया में पकी ईंटों का प्रयोग मिलता तो है पर इतने बड़े पैमाने पर नहीं जितना सिन्धु घाटी सभ्यता में ।

जलनिकासी की व्यवस्था

मोहें जो दड़ो की जल निकास प्रणाली अद्भुत थी । लगभग हर नगर के हर छोटे या बड़ेमकान में प्रांगण और स्नानागार होता था । कालीबंगां के अनेक घरों में अपने-अपने कुएं थे । घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता जहां इनके नीचे मोरियां (नालियां) बनी थीं । अक्सर ये मोरियां ईंटों और पत्थर की सिल्लियों से ढकीं होती थीं । सड़कों की इन मोरियों में नरमोखे भी बने होते थे । सड़कों और मोरियों के अवशेष बनावली में भी मिले हैं ।

कृषि

आज के मुकाबले सिन्धु प्रदेश पूर्व में बहुत ऊपजाऊ था । ईसा-पूर्व चौथी सदी में सिकन्दर के एक इतिदासकार ने कहा था कि सिन्ध इस देश के ऊपजाऊ क्षेत्रों में गिना जाता था । पूर्व काल में प्राकृतिक वनस्पति बहुत थीं जिसके कारण यहां अच्छी वर्षा होती थी । यहां के वनों से ईंटे पकाने और इमारत बनाने के लिए लकड़ी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में लाई गई जिसके कारण धीरे धीरे वनों का विस्तार सिमटता गया । सिन्धु की उर्वरता का एक कारण सिन्धु नदी से प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ भी थी । गांव की रक्षा के लिए खड़ी पकी ईंट की दीवार इंगित करती है बाढ़ हर साल आती थी । यहां के लोग बाढ़ के उतर जाने के बाद नवम्बर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रील के महीने में गेँहू और जौ की फ़सल काट लेते थे । यहां कोई फावड़ा या फाल तो नहीं मिला है लेकिन कालीबंगां की प्राक्-हड़प्पा सभ्यता के जो कूँट (हलरेखा) मिले हैं उनसे आभास होता है कि राजस्थान में इस काल में हल जोते जाते थे । सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, राई, मटर आदि अनाज पैदा करते थे । वे दो किस्म की गेँहू पैदा करते थे । बनावली में मिला जौ उन्नत किस्म का है । इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे । सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई । इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे ।

पशुपालन

हड़प्पा योंतो एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहां के लोग पशुपालन भी करते थे । बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेंड़ और सूअर पाला जाता था . यहां के लोगों को कूबड़ वाला सांड विशेष प्रिय था । कुत्ते शुरू से ही पालतू जानवरों में से एक थे । बिल्ली भी पाली जाती थी । कुत्ता और बिल्ली दोनों के पैरों के निशान मिले हैं । लोग गधे और ऊंट भी रखते थे और शायद इनपर बोझा ढोते थे । घोड़े के अस्तित्व के संकेत मोहेंजोदड़ो की एक ऊपरी सतह से तथा लोथल में मिले एक संदिग्ध मूर्तिका से मिले हैं । हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था ।

व्यापार

यहां के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे । एक बड़े भूभाग में ढेर सारी सील (मृन्मुद्रा), एकरूप लिपि और मानकीकृत माप तौल के प्रमाण मिले हैं । वे चक्के से परिचित थे और संभवतः आजकल के इक्के (रथ) जैसा कोई वाहन प्रयोग करते थे । ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से व्यापार करते थे । उन्होने उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें व्यापार में सहूलियत होती थी । बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बंध था । मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापार के प्रमाण मिले हैं साथ ही दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का भी उल्लेख मिलता है – दलमुन और माकन । दिलमुन की पहचान शायद फ़ारस की खाड़ी के बहरीन के की जा सकती है ।

राजनैतिक ढांचा

इतना तो स्पष्ट है कि हड़प्पा की विकसित नगर निर्माण प्रणाली, विशाल सार्वजनिक स्नानागारों का अस्तित्व और विदेशों से व्यापारिक संबंध किसी बड़ी राजनैतिक सत्ता के बिना नहीं हुआ होगा पर इसके पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं कि यहां के शासक कैसे थे और शासन प्रणाली का स्वरूप क्या था ।

धर्म

मोहन जोदड़ो से एक पुजारी की प्रतिमा मिली है , जिससे इस वर्ग का होना प्रमाणित होता है .
हड़प्पा में पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएं भारी संख्या में मिली हैं । एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है । विद्वानों के मत में यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका निकट संबंध पौधों के जन्म और वृद्धि से रहा होगा । इसलिए मालूम होता है कि यहां के लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस तरह मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस् की । लेकिन प्राचीन मिस्र की तरह यहां का समाज भी मातृ प्रधान था कि नहीं यह कहना मुश्किल है । कुछ वैदिक सूक्तों में पृथ्वी माता की स्तुति है, किन्तु उनकों कोई प्रमुखता नहीं दी गई है । कालान्तर में ही हिन्दू धर्म में मातृदेवी को उच्च स्थान मिला है । ईसा की छठी सदी और उसके बाद से ही दुर्गा, अम्बा, चंडी आदि देवियों को आराध्य देवियों का स्थान मिला ।
पशुपति की विश्व प्रसिद्द मुहर

पुरुष देवता

यहां मिले एक सील पर एक पुरुष देवता का चित्र मिला है । उसके सिर पर तीन सींग है और वह योगी की मुद्रा में पद्मासन में बैठा है । उसके चारों ओर एक हाथी, एक गैंडा और एक बाघ है तथा आसन के नीचे एक भैंसा और पांवों के पास दो हिरण हैं । इसकी छवि पौराणिक पशुपति महादेव से मिलती है । यहां पर लिंग पूजा का भी प्रचलन था और कई जगहों पर पत्थरों के बने लिंग तथा योनि पाए गए हैं । ऋग्वेद में लिंग पूजक अनार्य जातियों की चर्चा है । यहां के लोग वृक्ष पूजक भी थे । एक मृन्मुद्रा में पीपल की डालों के बीच में विराजमान देवता चित्रित हैं । इस वृक्, की पूजा आजतक जारी है । पशु-पूजा में भी इनका विश्वास था । अपने समकालीन मिस्री सभ्यता के विपरीत सिन्धु घाटी सभ्यता में किसी मंदिर का प्रमाण नहीं मिलता है ।

शिल्प और तकनीकी ज्ञान

इस सभ्यता की सबसे प्रसिद्द कांस्य -नर्तकी जो मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है .

यद्यपि इस युग के लोग पत्थरों के बहुत सारे औजार तथा उपकरण प्रयोग करते थे पर वे कांसे के निर्माण से भली भींति परिचित थे । तांबे तथा टिन मिलाकर धातुशिल्पी कांस्य का निर्माण करते थे । हंलांकि यहां दोनो में से कोई भी खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं था । सूती कपड़े भी बुने जाते थे । लोग नाव भी बनाते थे । मुद्रा निर्माण, मूर्तिका निर्माण के सात बरतन बनाना भी प्रमुख शिल्प था ।

लिपि

सिन्धु घाटी से प्राप्त लिपि के साक्ष्य . यह भावचित्रात्मक (बुस्त्रोफेदन ) थी .
 प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहां के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था । हड़प्पाई लिपि का पहला नमूना 1853 ईस्वी में मिला था और 1923 में पूरी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है।

माप-तौल

लिपि का ज्ञान हो जाने के कारण निजी सम्पत्ति का लेखा-जोखा आसान हो गया । व्यापार के लिए उन्हें माप तौल की आवश्यकता हुई और उन्होने इसका प्रयोग भी किया । बाट के तरह की कई वस्तुए मिली हैं । उनसे पता चलता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तकों (जैसे – 16, 32, 48, 64, 160, 320, 640, 1280 इत्यादि) का उपयोग होता था । दिलचस्प बात ये है कि आधुनिक काल तक भारत में 1 रूपया 16 आने का होता था । 1 किलो में 4 पाव होते थे और हर पाव में 4 कनवां यानि एक किलो में कुल 16 कनवां ।

अवसान

यह सभ्यता मुख्यतः 2500 ई.पू. से 1800 ई. पू. तक रही । ऐसा आभास होता है कि यह सभ्य्ता अपने अंतिम चरण में ह्वासोन्मुख थी । इस समय मकानों में पुरानी ईंटों के प्रयोग कि जानकारी मिलती है । इसके विनाश के कारणों पर विद्वान एकमत नहीं हैं । सिंधु घाटी सभ्यता के अवसान के पीछे विभिन्न तर्क दिये जाते हैं जैसे:
1.बर्बर आक्रमण
2.जलवायु परिवर्तन एवं पारिस्थितिक असंतुलन 3.बाढ तथा भू-तात्विक परिवर्तन 4.महामारी 5.आर्थिक कारण ऐसा लगता है कि इस सभ्यता के पतन का कोइ एक कारण नहीं था बल्कि विभिन्न कारणों के मेल से ऐसा हुआ ।











शनिवार, 8 जून 2013

साक्षात्कार की तैयारी कैसे करें ? ...1

                                       किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में साक्षात्कार एक महत्पूर्ण स्तर होता है . क्योंकि साक्षात्कार से ही आपके चयन की पूर्णता होती है . अधिकांश प्रतियोगी साक्षात्कार के नाम से ही घबरा जाते है , उन्हें समझ में ही नही आता कि साक्षात्कार की तैयारी कैसे करें . तो ऐसे प्रतियोगियों के लिए मेरा कहना कि साक्षात्कार से इतना घबराने की जरुरत नही है . क्योंकि अधिकांश प्रतियोगी परीक्षायों में कुल अंक में से साक्षात्कार के अंक मात्र 10  से 15 % ही होते है . बाकी अंक तो लिखित परीक्षा के होते है . तो अगर आपको लिखित परीक्षा में अच्छे अंक आने की सम्भावना है , तो फिर साक्षात्कार  से बिलकुल भी डरने की जरुरत ही नही है , क्योंकि आपके लिए साक्षात्कार तो मात्र औपचारिकता ही है , आपका चयन तो लिखित परीक्षा से ही हो जायेगा . क्योंकि अक्सर ये देखा जाता है , कि साक्षात्कार में बहुत अच्छे अंक लाने वाले प्रतियोगी चयनित नही हो पाते है, जबकि अपेक्षाकृत कम अंक वाले सफल हो जाते है . 
       खैर ये तो हुई लिखित परीक्षा में जिनके अच्छे अंक है , लेकिन जिनके अंक औसत है , उन्हें भी घबराने कि जरुरत नही है . यहाँ पहली जरुरी बात बता दूं , कि साक्षात्कार आपके ज्ञान का मूल्यांकन नही है , बल्कि ये आपके व्यक्तिव   का परिक्षण है .   आपके ज्ञान का परिक्षण लिखित परीक्षा में किया जा चुका है . अब चूँकि साक्षात्कार आपके व्यक्तिव का मूल्यांकन है , तो जानते है , कि व्यक्तिव में क्या आता है ?
व्यक्तिव से आशय किसी भी व्यक्ति के चाल-ढाल, रहन-सहन , रूप-रंग , पहनावा के साथ उसके विचार ,वाक् क्षमता , प्रत्युत्पन्नमति (हाजिर- जवाबी ) , बोध क्षमता , आदि का समुच्चय है . 
                                      तो हम अपने व्यक्तिव पर थोडा सा ध्यान देकर अपने साक्षात्कार को प्रभावी बना सकते है . इसके लिए मोक इंटरव्यू का भी सहारा लिया जा सकता है . इसके अलावा अपने साथियों के साथ अपने व्यक्तिव की कमियों-खूबियों पर चर्चा कर उसे प्रभावी बनाया जा सकता है .
                                                            अब बात करते है , साक्षात्कार की तैयारी की . तो साक्षात्कारकर्ताओं  के सामने आपकी पहचान के रूप में सिर्फ आपका बायोडाटा ही होता है , जो फर्स्ट इम्प्रैशन का काम करता है . अतः तैयारी की शुरूआत बायोडाटा से ही करनी चाहिए . बायोडाटा का पहला बिंदु आपका नाम होता है , यह बहुत महत्वपूर्ण है , क्योंकि इसी से आपकी पहचान है . अपने नाम का अर्थ , आपके जीवन और व्यक्तिव से उसका सम्बन्ध , उसका इतिहास (यदि है तो ) , आपके नाम के प्रसिद्द व्यक्ति और उनकी प्रसिद्दि का कारण ( यदि वर्तमान में चर्चित है , तो उसकी जानकारी ) . यदि आपका नाम अतिसामान्य है , तो हो सकता है उस पर कोई प्रश्न ही न हो .
                  इसके बाद आपका उपनाम (सरनेम ) , माता-पिता  के नाम से सम्बंधित जानकारी भी तैयार करें .
                                             इसके बाद बारी आती है , आपकी शिक्षा और योग्यता की , तो अपने स्कूली , कालेज की डिग्रियों और सलग्न दस्तावेजो के बारे में जरुर जानकारी जुटाएं . स्नातक एवं स्नातकोत्तर के विषय सम्बन्धी जानकारी आवश्यक रूप से तैयार करें .
इसके बाद नंबर आता है, आपके गृह नगर/जिले/राज्य   , यदि नौकरी करते है , तो उस नगर/जिले /राज्य की जानकारी तैयार करने की .
अपनी रूचि / अभिरुचि / उपलब्धि आदि के बारे में भी विशिष्ट जानकारी ( क्योंकि ये आपसे ही जुडी है ) तैयार करके रखे .
  यदि आप पूर्व से ही सेवा (शासकीय/ अशासकीय ) में है , तो अपने कार्य , अधिकार , नियम-कानून , योजनाओं की जानकारी पूरी तरह से अपडेट कर ले . विभागीय जानकारी भी तैयार रखे .
समसामयिक घटनाओं का न केवल ज्ञान रखे बल्कि उनके अच्छे-बुरे प्रभाव , सुझाव/ समाधान भी तैयार रखे
यहाँ तक कि साक्षात्कार के दिन भी अख़बार / न्यूज चैनल आदि देख कर जाये .
द्वारा -
मुकेश पाण्डेय 
( मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग से चयनित ) 
क्रमशः जारी रहेगा .....
आप अपने प्रश्न /सुझाव/ विचार टिपण्णी में दर्ज कर सकते है . या फिर मेरे मोबाइल 9039438781 पर संपर्क कर सकते है . ( कृपया कार्यालीन समय पर संपर्क न करें ) 

शुक्रवार, 7 जून 2013

मध्य प्रदेश समसामयिक महत्वपूर्ण ज्ञान : वर्ष 2013

मध्य प्रदेश सरकार ने मलखंभ को राजकीय खेल घोषित करने का निर्णय 10 अप्रैल 2013 को किया. राज्य सरकार ने एक नई योजना-मिशन ओलिम्पिक 2020 की शुरूआत करने का भी निर्णय लिया. इस योजना के तहत ओलिम्पिक 2020 में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए राज्य के चुने हुए खिलाड़ियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना है. मिशन ओलम्पिक-2020 योजना के तहत न्यूनतम 9 वर्ष की उम्र से दैनिक प्रतिभावान खिलाड़ियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना है. चयन किए गए खिलाड़ियों को विदेशी प्रशिक्षण संस्थानों में 2 वर्ष और देश में चयनित प्रशिक्षण संस्थानों में एक माह के उच्च स्तरीय प्रशिक्षण के लिए भेजा जाना है.
मलखंभ
मलखंभ भारत के प्राचीन खेलों में से एक है. यह कम से कम समय में शरीर के हरेक अंग की कसरत सुनिश्चित करता है. इसे कारण से राज्य सरकार ने मलखंभ को राज्य खेल घोषित किया है.

मध्य प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना की शुरूआत 1 अप्रैल 2013 को की. इस योजना का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के लिये स्वयं का उद्योग, सेवा, व्यवसाय स्थापित करने हेतु बैंकों के माध्यम से ऋण उपलब्ध कराना है. मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना की घोषणा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (भाजपा) ने युवा पंचायत में की.
 
मध्य प्रदेश भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा जारी योजना निधि का पूरा उपयोग करने वाला देश का पहला राज्य बना.


मध्य प्रदेश सरकार ने रेडियो आजाद हिंद नामक सामुदायिक रेडियो प्रसारण केंद्र का प्रारंभ 25 मार्च 2012 को किया. इस केंद्र से श्रोताओं को स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सेनानियों और देश के स्वर्णिम इतिहास के बारे में जानकारी दी जानी है.

सूचना प्रौद्योगिकी विकास और संचार की विविध माध्यमों की उपलब्धता के बावजूद आज भी रेडियो जनसंचार का एक स्वभावी और सस्ता माध्यम बना हुआ है. इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए रेडियो आजाद हिंद  का प्रसारण शुरू किया गया.

सामुदायिक स्टूडियों की उपयोगिता को देखते हुए सरकार ने इस वर्ष 2012 के अंत तक प्रदेश में एक सौ बीस स्टूडियों केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई. 

विदित हो कि नेताजी सुभाष चन्द्रबोस ने आज ही के दिन 25 मार्च  को जर्मनी में आजाद हिंद रेडियो से पहली बार प्रसारण किया था.


मध्यप्रदेश सरकार राज्य के प्रत्येक गांव का मास्टर प्लान तैयार करने वाला देश का प्रथम राज्य बन गया. मध्य प्रदेश के वित्त एवं योजना मंत्रालय के अनुसार विकेन्द्रीकृत जिला नियोजन अवधारणा के तहत प्रत्येक गांव का मास्टर प्लान तैयार किया गया.

अपनी प्रकृति के अनूठे जनजातीय जीवन, देशज ज्ञान, परम्परा और सौंदर्यबोध पर केन्द्रित अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जनजातीय संग्रहालय का श्यामला हिल्स, भोपाल में राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने  6 जून को किया । संग्रहालय में मुख्य रूप से प्रवेश-द्वार, दीर्घा-पथ, सूचना-केन्द्र, प्रदर्शनी-दीर्घा और सांस्कृतिक वैविध्य, जीवन-शैली, कला-बोध, देव-लोक एवं अतिथि राज्य छत्तीसगढ़ की विशेषताओं को समेटे हुए पाँच दीर्घा बनायी गयी हैं।

राज्य सरकार द्वारा अटल ज्योति अभियान के जरिये एक-एक कर सभी जिलों में 24x7 विद्युत प्रदाय की शुरूआत की जा रही है। अब तक 28 जिलें में यह सुविधा मिल गई है। इनमें जबलपुर, मण्डला, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, बुरहानपुर, भोपाल, बालाघाट, रतलाम, धार, अलीराजपुर, श्योपुर, पन्ना, मंदसौर, रीवा, होशंगाबाद, राजगढ़, उज्जैन, शिवपुरी, खण्डवा, हरदा, बैतूल, खरगोन, सिंगरौली, नीमच, शाजापुर तथा टीकमगढ़ और सतना जिला शामिल है। 
 प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में कृषि तथा गैर-कृषि, घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को पृथक रूप से बिजली आपूर्ति करने के लिये कृषि फीडरों का निर्माण किया जा रहा है। करीब 4000 करोड़ रुपये की इस योजना से 4,500 गाँव में 11 के.व्ही. के 6000 से ज्यादा कृषि फीडरों का विभक्तिकरण किया जा रहा है। योजना के माध्यम से 71 हजार 688 किलोमीटर की 11 के.व्ही. विद्युत लाइनों का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें 71 हजार 516 वितरण ट्रांसफार्मर स्थापित किये जा रहे हैं। साथ ही लगभग 60 हजार किलोमीटर की निम्न-दाब लाइनों का केबलीकरण किया जा रहा है, ताकि बिजली चोरी पर अंकुश लगाया जा सके

अन्नपूर्णा योजना -
 मध्यप्रदेश में अंत्योदय, बीपीएल तथा निराश्रित वृद्धजन बीपीएल परिवारों को एक जून, 2013 शनिवार से एक रुपये किलो गेहूँ और आयोडीनयुक्त नमक तथा 2 रुपये किलो चावल देने के लिये अन्नपूर्णा योजना का नये स्वरूप में प्रारंभ होगा। योजना से लगभग 74 लाख राशन-कार्डधारी परिवारों को लाभ होगा। योजना लागू हो जाने के बाद राज्य सरकार पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली में प्रतिवर्ष 1000 करोड़ रुपये का व्यय भार आयेगा।
मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के बाद देश का पहला ऐसा प्रदेश होगा जो इन विशेष रियायती दरों पर गरीब परिवारों को खाद्यान्न उपलब्ध करवायेगा। इस विशेष रियायती दर पर खाद्यान्न की उपलब्धता से प्रदेश की लगभग आधी आबादी अर्थात् 3 करोड़ 50 लाख गरीब नागरिक लाभान्वित होंगे। इनमें 8 लाख परिवार अंत्योदय श्रेणी के और 56 लाख परिवार बी.पी.एल. श्रेणी के होंगे।
मध्यप्रदेश में बीपीएल और अंत्योदय परिवारों को विशेष रियायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाने का राज्य शासन का यह फैसला भारत सरकार के प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक से भी एक कदम आगे का फैसला है। खाद्य सुरक्षा विधेयक में 2 रूपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रूपये प्रति किलोग्राम चावल उपलब्ध करवाया जाना प्रस्तावित है।

प्रदेश में स्पर्श अभियान में अब तक 8 लाख 10 हजार निःशक्तजन का डाटाबेस तैयार किया जा चुका है। इनमें से 1,006 निःशक्तजन को शासकीय सेवा में रोजगार दिया गया है। स्व-रोजगार के लिये 14 हजार 595 निःशक्तजन को चिन्हांकित करने के साथ ही 3735 निःशक्त व्यक्ति को अशासकीय संस्था एवं उद्योग में नियोजित किया गया।

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आज सम्पन्न मंत्रि-परिषद् की बैठक में आदिवासी युवाओं के लिये टंट्या भील स्व-रोजगार योजना को मंजूरी दी गई। योजना बैंकों के माध्यम से क्रियान्वित की जायेंगी। इसमें आदिवासी हितग्राहियों को 50 हजार से 25 लाख रुपये तथा उससे अधिक ऋण का प्रावधान है। योजना में 30 प्रतिशत अनुदान, अधिकतम 3 लाख तक तथा 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान की व्यवस्था राज्य शासन द्वारा की जायेगी। साथ ही गारंटी शुल्क तथा गारंटी सेवा शुल्क भी राज्य सरकार द्वारा वहन की जायेगी। वर्ष 2013 में इस योजना से 5000 आदिवासी युवा को लाभांवित करने का लक्ष्य रखा गया है। 

मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम अब पर्यटकों को बौद्ध पर्यटन की ओर आकर्षित करने के लिए बुद्धिस्ट परिपथ का विकास करेगा। इसके लिए भारत सरकार द्वारा 5 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं।
प्रदेश में साँची बौद्ध पर्यटकों का पंसदीदा स्थल है। भोपाल से 46 किलोमीटर दूर स्थित विश्व धरोहर साँची में श्रीलंका, जापान, थाईलेंड, कोरिया तथा चीन से लोग भ्रमण पर आते हैं। यहाँ पर कई बौद्ध स्मारक हैं जो तीसरी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। वर्ष 1912 से 1919 के बीच जान मार्शल की देखरेख में ढाँचों को वर्तमान रूप में लाया गया। साँची में बौद्ध वास्तु शिल्प की बेहतरीन कृतियाँ हैं, जिनमें स्तूप, तोरण स्तंभ शामिल हैं। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा साँची में बौद्ध एवं भारतीय ज्ञान-अध्ययन विश्वविद्यालय स्थापित भी किया जा रहा है।
पर्यटन विकास निगम द्वारा बुद्धिस्ट सर्किट के तहत आने वाले पर्यटन संभावित क्षेत्रों के विकास की कार्य-योजना बनाई गई है। साँची के साथ ही सतधारा, सोनारी, मूरेलखुर्द तथा अंधेर को मिलाकर बुद्धिस्ट सर्किट तैयार किया गया है। उल्लेखनीय है कि साँची से 17 किलोमीटर की दूरी पर हलाली नदी पर सतधारा स्तूप स्थित है। यहाँ पर सात स्तूप हैं, जिसमें सारिपुत्र तथा मौदत्रलयायाना नामक भगवान बुद्ध के शिष्यों के अवशेष पाये गये थे। सोनारी गाँव साँची से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर छोटी पहाड़ियों पर बौद्ध स्तूप स्थापित हैं। विदिशा से 17 किलोमीटर की दूरी पर अंधेर गाँव है जहाँ पर तीन बौद्ध स्तूप है, जिनमें वाकीपुत्र, मोगालयापुत्र तथा हरिथीपुत्र के अवशेष पाये गये हैं।
 
 वित्तीय वर्ष 2012-13 में मध्यप्रदेश की विकास दर 10.02 प्रतिशत रही। यह देश में सर्वाधिक है। इसी तरह कृषि विकास दर भी गत वर्ष देश में सर्वाधिक आँकी गयी। मध्यप्रदेश में किसानों को जीरो प्रतिशत ब्याज दर पर दिये जा रहे ऋण, कृषि केबिनेट का गठन, उर्वरकों के अग्रिम भण्डारण आदि की सुविधाओं के फलस्वरूप इस वर्ष भी कृषि वृद्धि दर 16 प्रतिशत होने की उम्मीद है। 

मध्यप्रदेश शासन के कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग को वर्ष 2013 के लिए यूनाइटेड नेशन्स द्वारा दिए जाने वाले पब्लिक सर्विस अवार्ड से नवाजा गया है। यूनाइटेड नेशन्स द्वारा प्रति वर्ष पब्लिक सर्विस के लिए स्थापित विभिन्न श्रेणियों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए उत्कृष्ट कार्यों को पुरस्कृत किया जाता है। यह पुरस्कार ग्रामीण हाट की अभिनव पहल के लिये प्रदेश के कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग को दिया गया है।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज भोपाल जिले के बैरसिया में आयोजित अंत्योदय मेले में राज्य के कर्मचारियों को आठ प्रतिशत महँगाई भत्ता दिये जाने की घोषणा की।

प्रदेश में मुख्यमंत्री कन्या अभिभावक पेंशन योजना एक अप्रैल, 2013 से लागू की गई है। यह योजना ऐसे दम्पत्ति, जिनकी संतान के रूप में केवल कन्याएँ हों, उनको सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से शुरू की गई है। योजना में ऑनलाइन आवेदन www.socialsecurity.mp.gov.in  या www.sssm.nic.in पर किया जा सकता है। वेबसाइट पर आवेदन के साथ योजना की जानकारी भी उपलब्ध है।
मुख्यमंत्री कन्या अभिभावक पेंशन योजना में हितग्राही दम्पत्ति में से किसी एक की न्यूनतम आयु 60 वर्ष आवश्यक है। योजना में ऐसे गैर-आयकरदाता दम्पत्ति, जिनकी संतान मात्र पुत्री हो, को 500 रुपये प्रतिमाह पेंशन मिलेगी।
योजना में प्राप्त आवेदन-पत्रों का सत्यापन ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत, नगरीय क्षेत्र में आयुक्त नगर निगम, मुख्य नगर पालिका अधिकारी नगर पालिका/नगर परिषद् द्वारा करवाया जायेगा। सत्यापन के समय हितग्राही को आवश्यक दस्तावेज अनिवार्य रूप से देना होंगे।
आवेदन-पत्र पूर्ण होने के बाद पदाभिहित अधिकारी ग्रामीण क्षेत्र के लिये मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत, नगरीय क्षेत्र में आयुक्त नगर निगम, मुख्य नगर पालिका अधिकारी नगर पालिका/नगर परिषद् सक्षम स्वीकृतियाँ जारी करेंगे। जिन हितग्राहियों के प्रकरण स्वीकृत किये जायेंगे, उनके स्वीकृति आदेश जारी कर जानकारी पोर्टल पर प्रदर्शित की जायेगी।

खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा प्रदेश के युवाओं में देश-भक्ति, देश की सीमाओं की सुरक्षा के प्रति जागृति लाने एवं युवाओं को सेना तथा अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर सैन्य गतिविधियों से अवगत करवाने ‘‘माँ तुझे प्रणाम’’ योजना प्रारंभ की गई है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने 16 जनवरी को युवा पंचायत में इस योजना को लागू करने की घोषणा की थी।
योजना में हर जिले से 5 युवक और 5 युवतियों का चयन किया जायेगा। 25-25 युवा के दो समूह युवक एवं युवतियाँ पृथक-पृथक को भारत की सीमाओं में जैसे लोगोंवाल, नाथुला दर्रा, अखनूर, लेह, पुलवामा, गंगानगर, तनोत माता का मंदिर, बाघा बार्डर, राजौरी, कारगिल आदि जगहों पर एक्सपोजर विजिट के लिये भेजा जायेगा।

पहले के 16 विभाग की 52 सेवा बढ़कर अब हुई 73, अब 21 विभाग की 101 सेवा समय-सीमा में मिलेंगी, अधिसूचना जारी

 
प्रदेश में लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी अधिनियम के दायरे में अब 21 विभाग की 101 सेवा शामिल की गई हैं। अब से पहले अधिनियम के दायरे में 16 विभाग की 52 सेवा अधिसूचित थीं। पाँच नए विभाग वित्त, वाणिज्य-उद्योग और रोजगार, योजना आर्थिक एवं सांख्यिकी, आवास एवं पर्यावरण तथा उच्च शिक्षा विभाग की 28 नयी सेवा और पहले के 16 विभाग की 21 सेवा को और शामिल करते हुए अब 21 विभाग की 101 सेवा अधिनियम के दायरे में आयेंगी। इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी गई है।
अधिसूचना के अनुसार वित्त विभाग की 3, वाणिज्य-उद्योग और रोजगार की 7, योजना, आर्थिक-सांख्यिकी की 7, आवास-पर्यावरण की 6 और उच्च शिक्षा विभाग की 5 सेवा को इस अधिनियम के अंतर्गत शामिल किया गया है।
अधिनियम के तहत वित्त विभाग द्वारा पेंशनर द्वारा निर्धारित पेंशन आवेदन-प्रपत्र भरकर प्रस्तुत करने की स्थिति में पेंशन, परिवार पेंशन प्रकरण, संभागीय पेंशन, जिला पेंशन कार्यालय भेजना, पेंशन/परिवार पेंशन प्रकरण में विभाग द्वारा आपत्तियों का निराकरण कर भुगतान आदेश जारी करना तथा भुगतान आदेश कोषालय अधिकारी को प्राप्त होने की स्थिति में पेंशन/परिवार पेंशन का प्रथम भुगतान जैसी सेवाएँ शामिल हैं।

श्री चौहान ने बताया कि अभी बीना से भोपाल तक सड़क के किनारे की सरकारी जमीन को इण्डस्ट्रियल कॉरीडोर के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया था। इसी प्रकार अब बीना से सागर सड़क के किनारे की सरकारी जमीन पर इण्डस्ट्रियल कॉरीडोर विकसित किया जायेगा। बीना रिफायनरी में स्थानीय लोगो को रोजगार दिलाने के लिए सरकार लड़ाई जारी रखेगी। जो उद्योग नीति बनाई गई है उसमें 50 प्रतिशत स्थानीय लोगो को रोजगार देना जरूरी होगा। उन्होंने युवाओ से अपील की कि वे अपने स्वयं के उद्योग लगाये। मुख्यमंत्री युवा स्व-रोजगार योजना के तहत 25 लाख रूपये तक का ऋण उपलब्ध कराया जायेगा।

 मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजरात से एशियाई शेरों को मध्यप्रदेश के पालपुर कुनो अभ्यारण्य स्थानांतरित करने के फैसले का स्वागत किया है।
ज्ञात हो कि उच्चतम न्यायालय ने एशियाई शेरों को गुजरात से मध्य प्रदेश के अभयारण्य में स्थानांतरित करने की अनुमति देते हुए कहा है कि यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। उन्हें दूसरे घर की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति के एस राधा.ष्णन और न्यायमूर्ति चन्द्र मौलि कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने अपने फैसले में शेरों का स्थानांतरण करने के लिए संबंधित वन्यजीव प्राधिकरणों को छह महीने का वक्त दिया है। इस समय गुजरात के गिर अभ्यारण्य में करीब चार सौ एशियाई शेर हैं।

गुरुवार, 6 जून 2013

मध्यप्रदेश को वर्ष 2012 में खूब मिले अवार्ड

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के कल्पनाशील नेतृत्व में प्रदेश ने वर्ष 2012 के दौरान अनेक क्षेत्रों में नवाचारी कार्यों और उपलब्धियों के लिये अवार्ड/पुरस्कार अर्जित किये।
पुरस्कार/अवार्ड
  • राष्ट्रपति द्वारा नई दिल्ली में मुख्यमंत्रियों के समागम में सर्वोच्च कृषि विकास दर के लिये मध्यप्रदेश पुरस्कृत।
  • ईको-टूरिज्म बोर्ड को उच्च गुणवत्ता प्रबंधन के लिये जनवरी में आई.एस.ओ. अवार्ड मिला।
  • मध्यप्रदेश वन विभाग को पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण के क्षेत्र में किये जा रहे सतत प्रयासों के लिये फरवरी में ग्रीन ग्लोबल फाउण्डेशन अवार्ड मिला।
  • ग्वालियर जिले के ‘जन-मित्र समाधान केन्द्र’ कार्यक्रम को राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस अवार्ड मिला।
  • राष्ट्रपति ने मध्यप्रदेश को पर्यटन के क्षेत्र में 4 राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार मिले। पर्यटन का समग्र विकास, सर्वश्रेष्ठ प्रचार-प्रसार सहित्य, पर्यटन पर सर्वश्रेष्ठ फिल्म, भारत में पर्यटन-स्थल के सर्वश्रेष्ठ नगरीय प्रबंधन का पुरस्कार प्रदान किया।
  • मार्च में मध्यप्रदेश पॉवर ट्रांसमिशन कम्पनी को भारत सरकार का राष्ट्रीय रजत-शील्ड पुरस्कार मिला।
  • प्रदेश की 212 ग्राम-पंचायतों को राष्ट्रपति ने निर्मल ग्राम पुरस्कार दिया ।
  • मध्यप्रदेश लोक-सेवा गारंटी कानून को संयुक्त राष्ट्र का लोक-सेवा अवार्ड मिला ।
  • जल स्वच्छता के नवाचारों के लिये मध्यप्रदेश को जून में मिला संयुक्त राष्ट्र रियो अ20 अर्थ-सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार।
  • ग्वालियर जिले को केन्द्रीय सामाजिक न्याय मंत्री श्री मुकुल वासनिक ने निःशक्तजन कल्याण क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि के लिये प्रतिष्ठित राष्ट्रीय न्यास पुरस्कार दिया।
  • सितम्बर में मुख्यमंत्री ग्राम-सड़क योजना की ऑनलाइन मॉनीटरिंग सॉफ्टवेयर के लिये केन्द्रीय मंत्री श्री सलमान खुर्शीद ने मध्यप्रदेश को ‘स्काच डिजिटल इन्क्लूजन अवार्ड’ से नवाजा।
  • मध्यप्रदेश को सितम्बर में तीन राष्ट्रीय अवार्ड मिले- ई-भुगतान के लिये गोल्ड अवार्ड, स्टेट ऑफ द इयर अवार्ड और कृषि में एग्रीकल्चर लीडरशिप अवार्ड-2012।
  • बालाघाट के माओवादी प्रभावित गाँव में मोबाइल बैंकिंग के लिये केन्द्रीय वित्त एवं ग्रामीण विकास मंत्री ने जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक को पुरस्कृत किया।
  • मध्यप्रदेश को इण्डिया टूडे ग्रुप द्वारा मेक्रो इकॉनामिक्स क्षेत्र में सर्वप्रथम राज्य घोषित किया गया।
  • मध्यप्रदेश के दो शिल्पी श्री इस्माइल सुलेमान खत्री और श्री हरीश कुमार सोनी राष्ट्रपति द्वारा शिल्प गुरु अवार्ड से सम्मानित।
  • मध्यप्रदेश को राष्ट्रीय सेवा योजना के सबसे ज्यादा 4 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
  • दिसम्बर में मध्यप्रदेश को सीएसआई द्वारा कलकत्ता में ई-उपार्जन के लिये प्रतिष्ठित निहिलेंट पुरस्कार दिया गया।
  • पटवारियो की भर्ती के लिये मध्यप्रदेश को नई दिल्ली में प्रतिष्ठित ‘मंथन अवार्ड-साउथ एशिया एण्ड एशिया पेसिफिक’ प्राप्त हुआ।
  • राष्ट्रपति द्वारा नई दिल्ली में मुख्यमंत्रियों के समागम में सर्वोच्च कृषि विकास दर के लिये मध्यप्रदेश पुरस्कृत।
  • कुल खाद्यान्न उत्पादन में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये मध्यप्रदेश का भारत सरकार के ‘कृषि कर्मण अवार्ड’ के लिये चयन।
  • आईबीएन-7 चैनल द्वारा ‘बड़े राज्यों की श्रेणी में तेजी से उभरता हुआ राज्य’ श्रेणी में मध्यप्रदेश का चयन। लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार ने दिल्ली में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को इस उपलब्धि के लिए किया सम्मानित।


    साभार -
    जनसंपर्क विभाग , मध्य प्रदेश 

मध्य प्रदेश का प्राचीन इतिहास

प्रागैतिहासिक मध्यप्रदेश-
प्रदेश के विभिन्न भागों में किए गए उत्खनन और खोजों में प्रागैतिहासिक सभ्यता के चिन्ह मिले हैं। आदिम प्रजातियां नदियों के काठे और गिरी-कंदराओं में रहती थी। जंगली पशुओं में सिंह, भैंसे, हाथी और सरी-सृप आदि प्रमुख थे। कुछ स्थानों पर "हिप्पोपोटेमस" के अवशेष मिले हैं। शिकार के लिए ये नुकीले पत्थरों औरहड्डियों के हथियारों का प्रयोग करते थे। मध्यप्रदेश के भोपाल, रायसेन, छनेरा, नेमावर, मोजावाड़ी, महेश्वर, देहगांव, बरखेड़ा, हंडिया, कबरा, सिघनपुर, आदमगढ़, पंचमढ़ी, होशंगाबाद, मंदसौर तथा सागर के अनेक स्थानों पर इनके रहने के प्रमाण मिले हैं।
इस काल के मानव ने अपनी कलात्मक अभिरूचियों की भी अभिव्यक्ति की हैं। होशंगाबाद के निकट की गुलओं, भोपाल के निकट भीमबैठका की कंदराओं तथा सागर के निकट पहाड़ियों से प्राप्त शैलचित्र इसके प्रमाण हैं।
ये शैलचित्र मंदसौर की शिवनी नदी के किनारे की पहाड़ियों, नरसिंहगढ़, रायसेन, आदमगढ़, पन्ना रीवा, रायगढ़ और अंबिकापुर की कंदराओं में भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। कुछ यूरोपीय विद्वानों ने इस राज्य का पूर्व, मध्य एवं सूक्ष्माश्मीय काल ईसा से 4000 वर्ष पूर्व का माना है। दूसरी ओर डॉ. सांकलिया इस सभ्यता को ईसा से 1,50,000 वर्ष पूर्व की मानते हैं।
सम्यता का दूसरा चरण पाषण एवं ताम्रकाल के रूप में विकसित हुआ है। नर्मदा की सुरम्य घाटी में ईसा से 2000 वर्ष पूर्व यह सभ्यता फली फूली थी। यह मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के समकालीन थी। महेश्वर, नावड़ा, टोड़ी, कायथा, नागदा, बरखेड़ा, एरण आदि इसके केन्द्र थे। इन क्षेत्रों की खुदाई से प्राप्त पुरावशेषों से इस सभ्यता के बारे में जानकारी मिलती है। उत्खनन में मृदभण्ड, धातु के बर्तन एवं औजार आदि मिले हैं। बालाघाट एवं जबलपुर जिलों के कुछ भागों में ताम्रकालीन औजार मिले हैं। इनके अध्ययन से ज्ञात होता है कि विश्व एवं देश के अन्य क्षेत्रों के समाप मध्यप्रदेश के कई भागों में खासकर नर्मदा, चंबल, बेतवा आदि नदियों के किनारों पर सभ्यता का विकास हुआ था। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक दल ने सन् 1932 में इस सभ्यता के चिन्ह प्रदेश के जबलपुर और बालाघट जिलों से प्राप्त किए थे।
डा. एच.डी. सांकलिया ने नर्मदा घाटी के महेश्वर, नावड़ा, टोड़ी, चोली और डॉ.बी.एस. वाकणकर ने नागदा-कायथा में इसे खोजा था। इसका काल निर्धारण ईसा पूर्व 2000 से लेकर 800 ईसा पूर्व के मध्य किया गया है।
इस काल में यह सभ्यता आदिम नहीं रह गई थी। घुमक्कड़ जीवन अब समाप्त हो गया था। खेती की जाने लागी थी। अनाजों और दालों का उत्पादन होने लगा था। कृषि उपकरण धातु के बनते थे। मिट्टी और धातु के बर्तनों का उपयोग होता था। इन पर चित्रकारी होती थी। पशुओं में प्रमुख रूप से गाय,बकरी,कुत्ता आदि पाले जाते थे।
प्राचीन काल
आर्यों के भारत आगमन के साथ भारतीय इतिहास में नया मोड़ आया। ऋ़ग्वेद में "दक्षिणापथ" और "रेवान्तर" शब्दों का प्रयोग किया गया। इतिहासकार बैवर के मत से आर्यों को नर्मदा और उसके प्रदेश की जानकारी थी। आर्य पंचनद प्रदेश (पंजाब) से अन्य प्रदेश में गए। महर्षि अगस्त के नेतृत्व में यादवों का एक कबीला इस क्षेत्र में आकर बस गया। इस तरह इस क्षेत्र का आर्यीकरण प्रारंभ हुआ। शतपथ ब्राहम्ण के अनुसार विश्वामित्र के 50 शापित पुत्र यहां आकर बसे। कालांतर में अत्रि, पाराशर, भारद्वाज, भार्गव आदि भी आए। लोकमान्य तिलक तथा स्वामी दयानंद ने भारत (तिब्बत) को ही आर्यों का मूल निवास स्थान बताया है।
पौराणिक गाथाओं के अनुसार कारकोट नागवंशी शासक नर्मदा के काठे के शासक थे। मौनेय गंधर्वों से जब उनका संघर्ष हुआ तो अयोध्या के इक्ष्वाकु नरेश मांधाता ने अपने पुत्र पुरूकुत्स को नागों के सहायतार्थ भेजा। उसने गंधर्वों को पराजित किया।
नागकुमारी नर्मदा का विवाह पुरूकुत्स से कर दिया गया। पुरूकुत्स ने रेवा का नाम नर्मदा कर दिया। इसी वंश के मुचकुंद ने रिक्ष और परिपात्र पर्वत मालाओं के बीच नर्मदा तट पर अपने पूर्वज नरेश मांधाता के नाम पर मांधाता नगरी (ओंकारेश्वर-मांधाता) बसाई।
यादव वंश के हैहय शासकों के काल में इस क्षेत्र का वैभव काफी निखरा। हैहय राजा माहिष्मत ने नर्मदा किनारे माहिष्मति नगरी बसाई। उन्होंने इक्ष्वाकुओं और नागों को हराया। मध्यप्रदेश के अतिरिक्त उत्तर भारत के कई क्षत्र उनके अधीन थे। इनके पुत्र भद्रश्रेण्य ने पौरवों को पराजित किया। कार्तवीर्य अर्जुन इस वंश के प्रतापी सम्राट थे। उन्होंने कारकोट वंशी नागों, अयोध्या के पौरवराज, त्रिशंकु और लंकेश्वर रावण को हराया। कालांतर में गुर्जर देश के भार्गवों से संघर्ष में हैहयों की पराजय हुई। इनकी शाखओं ने तुंडीकेरे (दमोह), त्रिपुरी, दर्शाण (विदिशा), अनूप (निमाड़), अवंति आदि जनपदों की स्थापना की।
  शुंग और कुषाण
मौर्यों के पतन के बाद शुंग मगध के शासन हुए। सम्राट पुष्यमित्र शुंग विदिशा में थे। इनके पूर्वजों को अशोक पाटलिपुत्र ले गए थे। उन्होंने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया। अग्निमित्र महाकौशल, मालवा, अनूप (विंध्य से लेकर विदर्भ) का राज्यापाल था सातवाहनों ने भी त्रिपुरी, विदिशा, अनूप आदि अपने अधीन किए।
गौतमी पुत्र सातकर्णी की मुद्राएं होशंगाबाद, जबलपुर, रायगढ़ आदि में मिली हैं। सातवाहनों ने ईसा पूर्व की दूसरी सदी से 100 ईसवी तक शासन किया था।
इसी दौरान शकों के हमले होने लगे थे। कुषाणों ने भी कुछ समय तक इस क्षेत्र पर शासन किया। कुषाण काल की कुछ प्रतिमाएं जबलपुर से प्राप्त हुई हैं। कर्दन वंश उज्जयिनी और छिंदवाड़ा में राज्यारूढ़ था। शक क्षत्रप रूद्रदमन प्रथम ने सातवाहनों को हराकर दूसरी शताब्दी में पश्चिमी मध्यप्रदेश जीता। उत्तरी मध्य भारत में नागवंश की विभिन्न शाखाओं ने कांतिपुर, पद्मावती और विदिशा में अपने राज्य स्थापित किए। नागवंश नौ शताब्दियों तक विदिशा में शासन करता रहा। शकों से संघर्ष हो जोने के बाद वे विंध्य प्रदेेश चले गये वहां उन्होंने किलकिला राज्य की स्थापना कर नागावध को अपनी राजधानी बनाया। त्रिपुरी और आसपास के क्षेत्रों में बोधों वंश ने अपना राजय स्थापित किया। आटविक राजाओं ने बैतूल में, व्याघ्रराज ने बस्तर में तथा महेन्द्र ने भी बस्तर में अपने राजय स्थापित किए। ये समुद्र गुप्त के समकालीन थे। चौथी शताब्दी में गुप्तों के उत्कर्ष के पूर्व विंध्य शक्ति के नेतृत्व में वाकाटकों ने मध्यप्रदेश के कुछ भागों पर शासन किया। राजा प्रवरसेन ने बुंदलेखण्ड से लेकर हैदराबाद तक अपना आधिपत्य जमाया। छिंदवाड़ा, बैतूल, बालाघाट आदि में वाकाटकों के कई ताम्र पत्र मिले हैं।


 

भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और मध्य प्रदेश


सन् 1857 की क्रांति में मध्यप्रदेश का बहुत असर रहा। बुदेला शासक अंग्रेजों से पहले से ही नाराज थे। इसके फलस्वरूप 1824 में चंद्रपुर (सागर) केजवाहर सिंह बुंदेला, नरहुत के मधुकर शाह, मदनपुर के गोंड मुखिया दिल्ली शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी।
इस प्रकार सागर, दमोह, नरसिंहपुर से लेकर जबलपुर, मंडला और होशंगाबाद के सारे क्षेत्र में विद्रोह की आग भड़की, लेकिन आपसी सामंजस्य और तालमेल के अभाव में अंग्रेज इन्हें दबाने में सफल हो गए।
Bhim Betka Nearest Bhopal Madhya Pradesh (www.mpinfo.org)
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 में मेरठ, कानपुर, लखनऊ, दिल्ली, बैरक्पुर आदि के विद्रोह की लपटें यहाँ भी पहुंची। तात्या टोपे और नाना साहेब पेशवा के संदेश वाहक ग्वालियर, इंदौर, महू, नीमच, मंदसौर, जबलपुर, सागर, दमोह, भोपाल, सीहोर और विंध्य के क्षेत्रों में घूम-घूमकर विद्रोह का अलख जगाने में लग गए। उन्होंने सथानीय राजाओं और नवाबों के साथ-साथ अंग्रेजी छावनियों के हिंदुस्तानी सिपाहियों से संपर्क बनाए। इस कार्य के लिए "रोटी और कमल का फूल" गांव-गांव में घुमाया जाने लगा। मुगल शहजादे हुमायूँ इन दिनों रतलाम, जावरा, मंदसौर, नीमच क्षेत्रो ं का दौरा कर रहे थे। इन दौरों के परिणामस्वरूप 3 जून 1857 को नीमच छावनी में विद्रोह भड़क गया और सिपाहियों ने अधिकारियों को मार भगाया। मंदसौर में भी ऐसा ही हुआ। 14 जून को ग्वालियर छावनी केसैनिकों ने भी हथियार उठा लिए। इस तरह शिवपुरी, गुना, और मुरार में भी विद्रोह भड़का।
उधर तात्या टोपे और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर जीता। महाराजा सिंधिया ने भागकर आगरा में अंग्रेजों के यहाँ शरण ली। 1 जुलाई 1857 को शादत खाँ के नेतृत्व में होल्कर नरेश की सेना ने छावनी रेसीडेंसी पर हमला कर दिया। कर्नल ड्यूरेंड, स्टूअर्ट आदि सीहोर की ओर भागे, पर वहाँ भी विद्रोह की आग सुलग चुकी थी। भोपाल की बेगम ने अंग्रेज अधिकारियों को सरंक्षण दिया। अजमेरा के राव बख्तावरसिंह ने भी विद्रोह किया और धार भेपाल आदि क्षेत्र विद्रोहियों के कब्जे में आ गए। महू की सेना ने भी अंग्रेज अधिकारियों को मार भगाया।
मंडलेश्वर, सेंधवा, एड़वानी आदि क्षेत्रों में इस क्रांति का नेतृत्व भीमा नायक कर रहा था। शादत खाँ, महू इंदौर के सैनिकों के साथ दिल्ली गया। वहां बादशाह जफर के प्रति मालवा के क्रांतिकारियों ने अपनी वफादारी प्रकट की। सागर, जबलपुर और शाहगढ़ भी क्रांतिकारियों के केंद्र थे। विजय राधोगढ़ के राजा ठाकुर सरजू प्रसाद इन क्रांतिकारियों के अगुआ थे। जबलपुर की 52वीं रेजीमेंट उनका साथ दे रही थी। नरसिंहपुर में मेहरबान सिंह ने अंग्रेजों को खदेड़ा। मंडला में रामगढ़ की रानी विद्रोह की अगुआ थी। इस विद्रोह की चपेट में नेमावर, सतवास और होशंगाबाद भी आ गए। रायपुर, सोहागपुर और संबलपुर ने भी क्रांतिकारियों का साथ दिया। मध्यप्रदेश में क्रांतिकारियों में आपसी सहयोग और तालमेल का अभाव था इसलिए अंग्रेज इन्हें एक-एक कर कुचलन में कामयाब हुए। सर ह्यूरोज ग्वालियर जीत लिया। महू, इंदौर, मंदसौर, नीमच के विद्रोह को कर्नल ड्यूरेण्ड, स्टुअर्ट और हेमिल्टन ने दबा दिया। लेफिटनेंट रॉबर्ट, कैप्टन टर्नर, स्लीमन आदि महाकौशल क्षेत्र में विद्रोह को दबाने में सफल हुए। दो वर्ष में क्रांति की आग ठंडी पड़ी और क्रांतिकारियों को कठोर दंड दिया गया।
सन् 1192 में तराइन की दूसरी लड़ाई में मुहम्मद गौरी ने चौहानों की सत्ता दिल्ली से उखाड़ फैंकी। उसने अपने सिपहसालार कुतुबुद्दीन एबन को दिल्ली का शासक नियुक्त किया। गौरी और ऐबक ने सन् 1196 में ग्वालियर के नरेश सुलक्षण पाल को हराया। उसने गौरी की प्रभुसत्ता स्वीकार कर ली। सन् 1200 में ऐबक ने पुन: ग्वालियर पर हमला किया। परिहारों ने ग्वालियर मुसलमानों को सौंप दिया। इल्तुतमिया ने सन् 1231-32 में ग्वालियर के मंगलदेव को हराकर विदिशा, उज्जैन, कालिंजर, चंदेरी आदि पर भी विजय प्राप्त की। उसने भेलसा और ग्वालियर में मुस्लिम गवर्नन नियुक्त किए। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा के सभी प्रमुख स्थान जीते। एन-उल-मुल्कमुल्तानी को मालवा का सूबेदार बनाया गया।