प्रागैतिहासिक मध्यप्रदेश-
प्रदेश के विभिन्न भागों में किए गए उत्खनन और खोजों में प्रागैतिहासिक सभ्यता के चिन्ह मिले हैं। आदिम प्रजातियां नदियों के काठे और गिरी-कंदराओं में रहती थी। जंगली पशुओं में सिंह, भैंसे, हाथी और सरी-सृप आदि प्रमुख थे। कुछ स्थानों पर "हिप्पोपोटेमस" के अवशेष मिले हैं। शिकार के लिए ये नुकीले पत्थरों औरहड्डियों के हथियारों का प्रयोग करते थे। मध्यप्रदेश के भोपाल, रायसेन, छनेरा, नेमावर, मोजावाड़ी, महेश्वर, देहगांव, बरखेड़ा, हंडिया, कबरा, सिघनपुर, आदमगढ़, पंचमढ़ी, होशंगाबाद, मंदसौर तथा सागर के अनेक स्थानों पर इनके रहने के प्रमाण मिले हैं।
प्रदेश के विभिन्न भागों में किए गए उत्खनन और खोजों में प्रागैतिहासिक सभ्यता के चिन्ह मिले हैं। आदिम प्रजातियां नदियों के काठे और गिरी-कंदराओं में रहती थी। जंगली पशुओं में सिंह, भैंसे, हाथी और सरी-सृप आदि प्रमुख थे। कुछ स्थानों पर "हिप्पोपोटेमस" के अवशेष मिले हैं। शिकार के लिए ये नुकीले पत्थरों औरहड्डियों के हथियारों का प्रयोग करते थे। मध्यप्रदेश के भोपाल, रायसेन, छनेरा, नेमावर, मोजावाड़ी, महेश्वर, देहगांव, बरखेड़ा, हंडिया, कबरा, सिघनपुर, आदमगढ़, पंचमढ़ी, होशंगाबाद, मंदसौर तथा सागर के अनेक स्थानों पर इनके रहने के प्रमाण मिले हैं।
इस काल
के मानव ने अपनी
कलात्मक अभिरूचियों की भी अभिव्यक्ति
की हैं। होशंगाबाद के
निकट की गुलओं, भोपाल के
निकट भीमबैठका की कंदराओं
तथा सागर के निकट
पहाड़ियों से प्राप्त शैलचित्र
इसके प्रमाण हैं।
ये शैलचित्र
मंदसौर की शिवनी नदी के
किनारे की पहाड़ियों,
नरसिंहगढ़, रायसेन, आदमगढ़, पन्ना
रीवा, रायगढ़ और अंबिकापुर
की कंदराओं में भी प्रचुर
मात्रा में मिलते हैं।
कुछ यूरोपीय विद्वानों ने इस
राज्य का पूर्व, मध्य
एवं सूक्ष्माश्मीय काल ईसा से
4000 वर्ष पूर्व का माना
है। दूसरी ओर डॉ. सांकलिया
इस सभ्यता को ईसा से
1,50,000 वर्ष पूर्व की मानते
हैं।
सम्यता का दूसरा चरण पाषण एवं ताम्रकाल के रूप में
विकसित हुआ है। नर्मदा की सुरम्य घाटी में ईसा से 2000 वर्ष पूर्व यह
सभ्यता फली फूली थी। यह मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के समकालीन थी। महेश्वर,
नावड़ा, टोड़ी, कायथा, नागदा, बरखेड़ा, एरण आदि इसके केन्द्र थे। इन
क्षेत्रों की खुदाई से प्राप्त पुरावशेषों से इस सभ्यता के बारे में
जानकारी मिलती है। उत्खनन में मृदभण्ड, धातु के बर्तन एवं औजार आदि मिले
हैं। बालाघाट एवं जबलपुर जिलों के कुछ भागों में ताम्रकालीन औजार मिले हैं।
इनके अध्ययन से ज्ञात होता है कि विश्व एवं देश के अन्य क्षेत्रों के समाप
मध्यप्रदेश के कई भागों में खासकर नर्मदा, चंबल, बेतवा आदि नदियों के
किनारों पर सभ्यता का विकास हुआ था। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक दल ने
सन् 1932 में इस सभ्यता के चिन्ह प्रदेश के जबलपुर और बालाघट जिलों से
प्राप्त किए थे।
डा. एच.डी. सांकलिया ने नर्मदा
घाटी के महेश्वर, नावड़ा, टोड़ी, चोली और डॉ.बी.एस. वाकणकर ने नागदा-कायथा
में इसे खोजा था। इसका काल निर्धारण ईसा पूर्व 2000 से लेकर 800 ईसा पूर्व
के मध्य किया गया है।
इस काल में यह सभ्यता आदिम
नहीं रह गई थी। घुमक्कड़ जीवन अब समाप्त हो गया था। खेती की जाने लागी थी।
अनाजों और दालों का उत्पादन होने लगा था। कृषि उपकरण धातु के बनते थे।
मिट्टी और धातु के बर्तनों का उपयोग होता था। इन पर चित्रकारी होती थी।
पशुओं में प्रमुख रूप से गाय,बकरी,कुत्ता आदि पाले जाते थे।
प्राचीन काल
आर्यों
के भारत आगमन के साथ भारतीय इतिहास में नया मोड़ आया। ऋ़ग्वेद में
"दक्षिणापथ" और "रेवान्तर" शब्दों का प्रयोग किया गया। इतिहासकार बैवर के
मत से आर्यों को नर्मदा और उसके प्रदेश की जानकारी थी। आर्य पंचनद प्रदेश
(पंजाब) से अन्य प्रदेश में गए। महर्षि अगस्त के नेतृत्व में यादवों का एक
कबीला इस क्षेत्र में आकर बस गया। इस तरह इस क्षेत्र का आर्यीकरण प्रारंभ
हुआ। शतपथ ब्राहम्ण के अनुसार विश्वामित्र के 50 शापित पुत्र यहां आकर बसे।
कालांतर में अत्रि, पाराशर, भारद्वाज, भार्गव आदि भी आए। लोकमान्य तिलक
तथा स्वामी दयानंद ने भारत (तिब्बत) को ही आर्यों का मूल निवास स्थान बताया
है।
पौराणिक गाथाओं के अनुसार
कारकोट नागवंशी शासक नर्मदा के काठे के शासक थे। मौनेय गंधर्वों से जब उनका
संघर्ष हुआ तो अयोध्या के इक्ष्वाकु नरेश मांधाता ने अपने पुत्र पुरूकुत्स
को नागों के सहायतार्थ भेजा। उसने गंधर्वों को पराजित किया।
नागकुमारी नर्मदा का विवाह
पुरूकुत्स से कर दिया गया। पुरूकुत्स ने रेवा का नाम नर्मदा कर दिया। इसी
वंश के मुचकुंद ने रिक्ष और परिपात्र पर्वत मालाओं के बीच नर्मदा तट पर
अपने पूर्वज नरेश मांधाता के नाम पर मांधाता नगरी (ओंकारेश्वर-मांधाता)
बसाई।
यादव वंश के हैहय शासकों के काल में इस क्षेत्र
का वैभव काफी निखरा। हैहय राजा माहिष्मत ने नर्मदा किनारे माहिष्मति नगरी
बसाई। उन्होंने इक्ष्वाकुओं और नागों को हराया। मध्यप्रदेश के अतिरिक्त
उत्तर भारत के कई क्षत्र उनके अधीन थे। इनके पुत्र भद्रश्रेण्य ने पौरवों
को पराजित किया। कार्तवीर्य अर्जुन इस वंश के प्रतापी सम्राट थे। उन्होंने
कारकोट वंशी नागों, अयोध्या के पौरवराज, त्रिशंकु और लंकेश्वर रावण को
हराया। कालांतर में गुर्जर देश के भार्गवों से संघर्ष में हैहयों की पराजय
हुई। इनकी शाखओं ने तुंडीकेरे (दमोह), त्रिपुरी, दर्शाण (विदिशा), अनूप
(निमाड़), अवंति आदि जनपदों की स्थापना की।
शुंग
और
कुषाण
मौर्यों
के
पतन
के
बाद
शुंग
मगध
के
शासन
हुए।
सम्राट
पुष्यमित्र
शुंग
विदिशा
में
थे।
इनके
पूर्वजों
को
अशोक
पाटलिपुत्र
ले गए
थे।
उन्होंने
विदिशा
को
अपनी
राजधानी
बनाया।
अग्निमित्र
महाकौशल,
मालवा,
अनूप (विंध्य
से
लेकर
विदर्भ)
का
राज्यापाल
था
सातवाहनों
ने भी
त्रिपुरी,
विदिशा,
अनूप
आदि
अपने
अधीन
किए।
गौतमी
पुत्र
सातकर्णी
की
मुद्राएं
होशंगाबाद,
जबलपुर,
रायगढ़
आदि
में
मिली
हैं।
सातवाहनों
ने
ईसा
पूर्व
की
दूसरी
सदी
से 100
ईसवी
तक
शासन
किया
था।
इसी
दौरान
शकों
के
हमले
होने
लगे
थे।
कुषाणों
ने भी
कुछ
समय
तक इस
क्षेत्र
पर
शासन
किया।
कुषाण
काल
की
कुछ
प्रतिमाएं
जबलपुर
से
प्राप्त
हुई
हैं।
कर्दन
वंश
उज्जयिनी
और
छिंदवाड़ा
में
राज्यारूढ़
था।
शक
क्षत्रप
रूद्रदमन
प्रथम
ने
सातवाहनों
को
हराकर
दूसरी
शताब्दी
में
पश्चिमी
मध्यप्रदेश
जीता।
उत्तरी
मध्य
भारत
में
नागवंश
की
विभिन्न
शाखाओं
ने
कांतिपुर,
पद्मावती
और
विदिशा
में
अपने
राज्य
स्थापित
किए।
नागवंश
नौ
शताब्दियों
तक
विदिशा
में
शासन
करता
रहा।
शकों
से
संघर्ष
हो
जोने
के
बाद
वे
विंध्य
प्रदेेश
चले
गये
वहां
उन्होंने
किलकिला
राज्य
की
स्थापना
कर
नागावध
को
अपनी
राजधानी
बनाया।
त्रिपुरी
और
आसपास
के
क्षेत्रों
में
बोधों
वंश
ने
अपना
राजय
स्थापित
किया।
आटविक
राजाओं
ने
बैतूल
में,
व्याघ्रराज
ने
बस्तर
में
तथा
महेन्द्र
ने भी
बस्तर
में
अपने
राजय
स्थापित
किए।
ये
समुद्र
गुप्त
के
समकालीन
थे।
चौथी
शताब्दी
में
गुप्तों
के
उत्कर्ष
के
पूर्व
विंध्य
शक्ति
के
नेतृत्व
में
वाकाटकों
ने
मध्यप्रदेश
के
कुछ
भागों
पर
शासन
किया।
राजा
प्रवरसेन
ने
बुंदलेखण्ड
से
लेकर
हैदराबाद
तक
अपना
आधिपत्य
जमाया।
छिंदवाड़ा,
बैतूल,
बालाघाट
आदि
में
वाकाटकों
के कई
ताम्र
पत्र
मिले
हैं।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंचरखा चर्चा चक्र चल, सूत्र कात उत्कृष्ट ।
पट झटपट तैयार कर, पलटे नित-प्रति पृष्ट ।
पलटे नित-प्रति पृष्ट, आज पलटे फिर रविकर ।
डालें शुभ शुभ दृष्ट, अनुग्रह करिए गुरुवर ।
अंतराल दो मास, गाँव में रहकर परखा ।
अतिशय कठिन प्रवास, पेश है चर्चा-चरखा ।
shukriya ravikar ji , isi tarah sneh banaye rakhe .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..।
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार...!