जिनेवा (स्विट्जरलैंड ) स्थित यूरोपियन ओर्गेंईजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न ) द्वारा विगत ४ जुलाई २०१२ को ईश्वरीय कण (god particle ) या हिग्स बोसान नामक सूक्ष्म अणु खोज लेने का दावा किया गया .
अब प्रश्न उठता है , कि आखिर ये हिग्स बोसान क्या है ?
वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार बिग बैंग (महाविस्फोट ) के बाद उत्पन्न १२ तत्वों के संयोग से ब्रम्हांड कि उत्पत्ति हुई है . इनमे से ११ कणों की खोज हो चुकी है , १२ वाँ कण ही 'हिग्स बोसान ' है , जिसके लिए सर्न द्वारा लार्ज हेड्रन कोलाईडर नामक महामशीन का निर्माण किया गया . इस मशीन द्वारा प्रोटानों की महा भिडंत करा कर बिग बैंग जैसी स्थितियां निर्मित की गयी और परिणामो को संवेदनशील कम्प्यूटर्स पर संगृहीत किया गया . महाविस्फोट का महाप्रयोग एक सेकण्ड से भी कम समय के लिए था .
कैसे नाम पड़ा ?
१९६४ में ब्रिटेन के वैज्ञनिक पीटर हिग्स और उनके सहयोगियों ने एक ऐसे कण की परिकल्पना की , जो अपने चारो और एक शक्तिशाली बल क्षेत्र का निर्माण करता है . जब भी कोई प्राथमिक कण इस क्षेत्र से गुजरता है , तो वह इससे द्रव्यमान ग्रहण कर आकार प्राप्त कर लेता है . वैज्ञानिको का मानना है. कि सारी सृष्टि इसी तरह बनी है . हिग्स बोसान कण सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है .
बोसान शब्द भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम से लिया गया है , जो आईन्सटीन के समकालीन थे . ढाका विश्वविद्यालय में अनुसन्धान के दौरान सत्येन्द्र नाथ बोस ने पाया कि ऊर्जा के विकिरण में सूक्ष्म कणों के लिए नियम अलग होते है . मात्र ३० वर्ष की आयु के इस सिद्धांत को किसी ने तवज्जो नही दी , तो उन्होंने अपने शोध पत्र को आईन्सटीन को भेज दिया . दोनों वैज्ञानिको के सम्मिलित प्रयास से बोस-आईन्सटीन कंडसेट की खोज हुई . दोनों वैज्ञानिको की इस खोज के बाद ही इस वैज्ञानिक सत्य को मान्यता मिली , कि विभिन्न पदार्थ के व्यव्हार और गुण 'क्वांटम मेकेनिक्स ' से संचालित होते है , जबकि ब्रम्हांड के पिंड गुरुत्वाकर्षण की डोर बंधे है , और सापेक्षता के नियमो के अनुसार गति करते है .
हिग्स बोसान कणों से सम्बंधित इस प्रयोग के बाद ' विज्ञान बनाम भगवान् ' पर बहस तेज हो गयी है . ब्रम्हांड का निर्माता कौन है ? विज्ञान या भगवान् ?
इस प्रयोग के labh :-
हिग्स बोसान कणों की खोज से हमारे जीवन के कई क्षेत्रों में क्रन्तिकारी बदलाव आ जायेगा .
इससे इंटरनेट की स्पीड कई गुना बढ़ जाएगी .
यह ऐसे सभी उपकरणों के लिए सहायक होगा , जिसमे सिलिकोन का प्रयोग होता है .
अन्तरिक्ष तकनीक और अधिक प्रभावशाली हो जाएगी .
स्वस्थ्य सेवाओ में सुधार होगा
बिजली उत्पादन बढ़ जायेगा
अब प्रश्न उठता है , कि आखिर ये हिग्स बोसान क्या है ?
वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार बिग बैंग (महाविस्फोट ) के बाद उत्पन्न १२ तत्वों के संयोग से ब्रम्हांड कि उत्पत्ति हुई है . इनमे से ११ कणों की खोज हो चुकी है , १२ वाँ कण ही 'हिग्स बोसान ' है , जिसके लिए सर्न द्वारा लार्ज हेड्रन कोलाईडर नामक महामशीन का निर्माण किया गया . इस मशीन द्वारा प्रोटानों की महा भिडंत करा कर बिग बैंग जैसी स्थितियां निर्मित की गयी और परिणामो को संवेदनशील कम्प्यूटर्स पर संगृहीत किया गया . महाविस्फोट का महाप्रयोग एक सेकण्ड से भी कम समय के लिए था .
कैसे नाम पड़ा ?
१९६४ में ब्रिटेन के वैज्ञनिक पीटर हिग्स और उनके सहयोगियों ने एक ऐसे कण की परिकल्पना की , जो अपने चारो और एक शक्तिशाली बल क्षेत्र का निर्माण करता है . जब भी कोई प्राथमिक कण इस क्षेत्र से गुजरता है , तो वह इससे द्रव्यमान ग्रहण कर आकार प्राप्त कर लेता है . वैज्ञानिको का मानना है. कि सारी सृष्टि इसी तरह बनी है . हिग्स बोसान कण सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है .
बोसान शब्द भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम से लिया गया है , जो आईन्सटीन के समकालीन थे . ढाका विश्वविद्यालय में अनुसन्धान के दौरान सत्येन्द्र नाथ बोस ने पाया कि ऊर्जा के विकिरण में सूक्ष्म कणों के लिए नियम अलग होते है . मात्र ३० वर्ष की आयु के इस सिद्धांत को किसी ने तवज्जो नही दी , तो उन्होंने अपने शोध पत्र को आईन्सटीन को भेज दिया . दोनों वैज्ञानिको के सम्मिलित प्रयास से बोस-आईन्सटीन कंडसेट की खोज हुई . दोनों वैज्ञानिको की इस खोज के बाद ही इस वैज्ञानिक सत्य को मान्यता मिली , कि विभिन्न पदार्थ के व्यव्हार और गुण 'क्वांटम मेकेनिक्स ' से संचालित होते है , जबकि ब्रम्हांड के पिंड गुरुत्वाकर्षण की डोर बंधे है , और सापेक्षता के नियमो के अनुसार गति करते है .
हिग्स बोसान कणों से सम्बंधित इस प्रयोग के बाद ' विज्ञान बनाम भगवान् ' पर बहस तेज हो गयी है . ब्रम्हांड का निर्माता कौन है ? विज्ञान या भगवान् ?
इस प्रयोग के labh :-
हिग्स बोसान कणों की खोज से हमारे जीवन के कई क्षेत्रों में क्रन्तिकारी बदलाव आ जायेगा .
इससे इंटरनेट की स्पीड कई गुना बढ़ जाएगी .
यह ऐसे सभी उपकरणों के लिए सहायक होगा , जिसमे सिलिकोन का प्रयोग होता है .
अन्तरिक्ष तकनीक और अधिक प्रभावशाली हो जाएगी .
स्वस्थ्य सेवाओ में सुधार होगा
बिजली उत्पादन बढ़ जायेगा
जिनेवा (स्विट्जरलैंड ) स्थित यूरोपियन ओर्गेंईजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न ) |
आज 18/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
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