शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

क्या पढना चाहिए से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्या नही पढना चाहिए !!!


अक्सर मुझसे बहुत से प्रतियोगी ये शिकायत करते है कि मैं पढता तो बहुत हूँ , मगर मुझे सफलता नही मिलती है ! ये एक बहुत ही आम परेशानी है , जो अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी करने वाले प्रतियोगियों के साथ आती है । एक बात यहाँ मैं ये कहना चाहूँगा कि बहुत ज्यादा पढने से कभी सफलता नही मिलती है । बल्कि हम कम पढ़े लेकिन वो महत्पूर्ण और सही होना चाहिए । अक्सर लोग गलती ये करते है कि वो पढ़ते तो बहुत है , लेकिन उसमे से बहुत कुछ उतना महत्वपूर्ण नहीं होता या परीक्षा के सिलेबस से ही बाहर का होता है । और हम कितना भी पढ़ ले मगर वो हमरे किसी काम का नही होता है ।
ये बात बिलकुल उसी तरह से है कि अगर एक आदमी दिवार में उलटी कील पकड़ कर उसे गाड़ने का भरपूर प्रयास कर रहा है , अब वो चाहे जितना प्रयास करे क्या वो कील को दीवार में गाड़ पायेगा ? नही न !!
इसी तरह अगर हम प्रतियोगी परीक्षाओ कि तैयारी करते समय अगर सही दिशा में प्रयास नही करेंगे तो हम कितनी भी मेहनत कर ले मगर हमें सफलता नही मिल सकती है । सफलता के लिए हमें सही दिशा में , सही समय पर , सही तरीके से परिश्रम करना होगा ।
अब प्रश्न उठता है कि हमें कैसे पता चले कि हम सही दिशा में है या गलत दिशा में ?
इस प्रश्न के जवाब के लिए हमें सबसे पहले परीक्षा के सिलेबस को समझना होगा , फिर हमें पुराने प्रश्न पत्रों कि सहायता से प्रश्नों कि रूप रेखा को समझना होगा कि किस तरह के प्रश्न पूछे जाते है ? किस तरह के प्रश्न अधिक आते है ?
जब
हम परीक्षा के प्रश्नों के स्वरुप को सही तरीके से समझ लेते है तो हमरा काम बहुत आसान हो जाता है । और अपने सिलेबस के उस भाग पर फ़ालतू मेहनत करने से बच जाते है जिससे बहुत कम प्रश्न आते है या आते ही नही है । इसके साथ हमें ये भी पता चल जाता है , कि सिलेबस के किस टोपिक से ज्यादा प्रश्न आते है । और किस तरह से प्रश्न आते है । और हम अपनी तैयारी उसी तरह से सही दिशा में करना शुरू कर सकते है ।
आपकी सफलता कि शुभ कामनाओ के साथ .........
आपका ही मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'

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